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आशावाद और निराशावाद की जडें

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1-आशावाद व निराशावाद का सम्बन्ध-             हमारी जिन्दगी में आशा और निराशा दोनों दिखाई देते हैं। एक के वाद दूसरा सामने आता है,या कभी दोनों एक साथ दिखते हैं। इसका मतलव हुआ कि दोनों का परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध है,यह भी कह सकते हैं कि दोनों एक ही है, भले ही वे अलग-अलग दिखाई देते हैं। जबकि दोनों एक दूसरे के एकदम विपरीत ध्रुव हैं। हमेशा एक निराशावादी आशावादी भी होता है। जबतक हमारे सामने दोनों हैं,हमें असन्तोष रहता है, और जब दोनों चले जाते हैं तब हम विश्राम करते हैं,क्योंकि दोनों ही हमारे लिए गलत हैं,असन्तोष देने वाले होते हैं।   2-आशावादी उजाला और निराशावादी अंधेरा है-   क-          अगर निराशावादी को देखें तो वह अंधेरे पक्ष की ही ओर देखे चले जाता है, और उजले पहलू से इंकार करता है,वह आधे सत्य को ही स्वीकार करता है। जबकि आशावादी लोग चीजों के अंधेरे पक्ष से इंकार करते हैं,केवल उजले पक्ष को ही स्वीकार करते हैं,लेकिन यह भी आधा ही सत्य होता है। अर्थात आशावादी और निराशावादी दोनों प...

प्रेम आत्मॉ का पोषक है

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1-प्रेम की नीव-           अगर नाव का वजन अधिक है तो वह डूब जायेगी,तैरेगी नहीं, इसलिए प्रयास करें। प्रेम की नाव में बैठकर वही व्यक्ति पार हो सकता है जिसमें कोमलता हो,गीत और नृत्य का उत्सव आनन्द के रूप में हो। इसलिए मिट्टी की तरह कोमल बन जाओ, इसके लिए अपने ह्दय से सभी कठोर पत्थरों को छॉनकर बाहर फेंक दो। लेकिन होता क्या है कि हम उल्टा करते हैं,हम संदेह और अविश्वास एकत्र करके अपनी ही जमीन को पथरीला बनाकर नष्ट कर देते हैं। जो प्रेमी एकाग्रता से प्रेम करता है,वही सत्य को उपलव्ध हो सकता है।क्योंकि अमृत पाने के लिए ह्दय रूपी शीरे में प्रेम के कृत्यों को मिलाकर और उसे आग पर रखकर मथना होता है। 2-प्रेम का अहसास -           सामान्य़तः लोग प्रेम तो करते है,लेकि्न उसमें प्रेम की तीव्र भावना और अहसास नहीं होता है,वे प्रेम का शोषण करते हैं,वे प्रेमियों की भॉति व्यवहार तो करते हैं,लेकिन उसका यह प्रेम केवल अपने को संतुष्ट और प्रशन्न करने के लिए ही होता है।प्रेम की तीव्र भावना और अहसास नहीं होता है।...

खुशी के पल नाच-गान के साथ

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1-नाच-गान ही जिन्दगी में खुशी के पल है- अ-          कुछ लोग जिन्दगी के पलों को आनन्दमय बनाने के लिए नाच-गाने को महत्व देते हैं,वे कहते हैं कि अगर तुम नाच सकते हो तो तुम्हारे जीवन में कई अवरोध नष्ट हो जायेंगे। क्योंकि नृत्य में जो गति होती है वह सच्ची होती है,केवल उसमें इधर-उधर घूमना ही तो है। अगर आपने किसी को नृत्य में खोते हुये देखा होगा,तो उस समय उसके मन की दशा को समझ के देखें तो नाचते हुये वह घुल रहा है,तरल बन रहा है,वह ठोस से तरल बन रहा है,यही तरलता अवरोधों को पिघलाती है। इसलिए उन लोगों के लिए नृत्य करना भी एक योग है। इसी लिए वे दूसरों के साथ घण्टों नाच करते हैं। कुछ लोग तो रात्रि के स्वच्छ चॉदनी में नाचते हैं,वे चॉद को कृष्ण के प्रतीक के रूप में मानते हैं,वे कृष्ण को पूर्ण चन्द्र ही कहते हैं। फिर जहॉ पूर्ण चन्द्रमॉ है वहॉ वे नाचेंगे ही। यह नृत्य उनका किसी को दिखाने के लिए नहीं होता है बल्कि अपने आनन्द के लिए होता है। अगर कोई देखता है तो अलग बात है। ब-          एक बार किसी ने तु...

भौतिकवाद और आध्यात्मवाद का आमेलन

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1-खाओ-पीयो और मौज करो-           जी हॉ जीवन के दो किनारे माने गये हैं एक किनारा इधर का और दूसरा उधर का। इधर का किनारा भौतिकवाद और उधर का किनारा आध्यात्मवाद का। कुछ लोगों की विचारधारा होती है कि दो दिन की जिन्दगी होती है, क्यों न मौज-मस्ती से रहें। ऐसे लोगों का यह दृष्टिकोंण भौतिकवादी है। इस विचारधारा से वे लोग कुछ जुटा नहीं पाते हैं,इसलिए कि उनका तर्क होता है कि हर एक को मृत्यु पूरी तरह से सब कुछ नष्ट कर देगी,कुछ भी नहीं बचेगा,इसलिए दूसरे किनारे की फिक्र ही न करो! इस बारे में सोचो ही नहीं और न विचार करो। परमात्मा,सत्य,मुक्ति,मोक्ष या निर्वांण को प्राप्त करने के बारे में ये सभी भ्रम मात्र है,इनका कोई कहीं अस्तित्व ही नहीं है। इसलिए उस क्षण से जितना भी रस निचोड सकते हो,निचोड लो। जीवन एक संयोग से मिला है। कई लोग इसी धारणॉ से जीते हैं । लेकिन ऐसे लोग बहुत कुछ स्थितियों में चूक जाते हैं –क्योंकि यह जीवन मात्र एक संयोग नहीं है,बल्कि इस जीवन का कुछ कारण और उद्देश्य भी है,जीवन तो एक फैलाव या विस्तार है। भविष्य बंजर नहीं है,बल्कि उसमें कु...

मनुष्य की समझ और सम्भावनाएं

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1-अर्थ हमेशा उच्चतम स्थिति में पहुंचने का नाम है -   अ-          अर्थ हमेशा किसी उच्चत्तम स्रोत से ही आता है,किसी वस्तु या व्यक्ति में स्वयं कभी कोई अर्थ नहीं होता है,वह तो हमेशा कहीं पार अज्ञात से आता है। जैसे एक बीज को ही देखें,जोकि अपने आप में अर्थहीन है,लेकिन अंकुरित होने पर वह अर्थपूर्ण हो जाता है। बीज के लिए तो वृक्ष होना ही उसका अर्थ है। लेकिन वृक्ष का अपने आप में तबतक कोई अर्थ नहीं है जबतक उस वृक्ष में फूल नहीं आते । अब वह वृक्ष मॉ बन गया है,अब उस वृक्ष ने कुछ नयॉ जन्म दिया है।वह वृक्ष अब महत्वपूर्ण बन गया है। इसीलिए तो वह वृक्ष फूलों का इन्तजार कर रहा था । लेकिन फूलों का भी अपने आप में तबतक कोई महत्व नहीं है जब तक हवाओं द्वारा उसकी सुगन्ध को दूर-दूर तर न बिखेर दे। फूल तभी अर्थपूर्ण होगे।   ब-          अर्थ का मतलव हुआ उच्चत्तर स्थिति में पहुंचना।हमेशा अर्थ होता है उसके पार जाने में। लेकिन मनुष्य के पार तो कुछ भी नहीं है,वह हमेशा उसी रूप में रहता है,उसका आकार रूप...

स्वतंत्रता का अर्थ अधिक सजग होना है

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1-            स्वतंत्रता का मतलव यह नहीं कि अब तुम्हारा कोई दाइत्व नहीं है। नीत्से ने घोषणॉ की थी कि परमात्मा मर चुका है और अब मनुष्य स्वतंत्र है। और इसके बाद अगला वाक्य लिखा था कि -अब तुम सब कुछ कर सकते हो,जो तुम करना चाहते हो । यहॉ पर यह बचन तर्कसंगत प्रतीत नहीं होता है। इसलिए कि हम उसके द्वारा सृजित प्राणी हैं,वह तो सृष्ठिकर्ता है। उसने ही हमारे अन्दर पाप और भ्रष्टाचार के बीज रखे,इसलिए जिम्मेदार वही है,हम तो स्वतंत्र है। और यदि अगर ईश्वर नहीं है तो तब मनुष्य अपने कार्यों के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार है। दूसरे पर जिम्मेदारी थोपने का कोई उपाय है ही नहीं।       2-            और यदि मैं तुमसे कहता हूं कि तुम स्वतंत्र हो,तो इसका मतलव यह हुआ कि तुम ही उत्तरदाई हो। तुम किसी दूसरे पर जिम्मेदारी नहीं डाल सकते हो,तुम ही अकेले जिम्मेदार हो। तुम जो कुछ भी करते हो,वह तुम्हारा ही कृत्य है। तुम यह नहीं कह सकते हो कि किसी अन्य व्यक्ति ने तुम्हैं वह सबकुछ करने...

मन की नकली यात्रा से मुक्ति का मार्ग

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1-            अगर देखें तो जब तक विचार चल रहे हैं ,यही मन की यात्रा है और जब विचार रुक जाते हैं,तो लगता है हमारा मन विचारों की भीड से मुक्त हो गया। हम देखते हैं कि हमारे चारों ओर अब विचारों का कोई भी धुवॉ नहीं रह गया है। अगर हमारी दृष्टि सरल,निर्दोष और विचारों के प्रदूषण से मुक्त हो जाती है,तो यह मन की यात्रा नहीं है,बल्कि इसके अतरिक्त प्रत्येक वस्तु मन की यात्रा है। प्रेम भी मन की यात्रा में सम्मिलित नहीं है। क्योंकि गहरे प्रेम के क्षणों में विचार रुक जाते हैं। सोचने की प्रक्रिया रुक जाती है। या गहरे ध्यान में भी जब मौन के क्षण आते हैं,तो हम पूरी तरह से स्थिर हो जाते हैं,हम शॉत हो जाते हैं,फिर चेतना की ज्यौति स्थिर हो जाती है,विचार प्रक्रिया रुक जाती है। फिर हम मन की पकड से बाहर हो जाते हैं। अन्यथा हर चीज मन की यात्रा होगी।       2-           इस बात को हमें ध्यान में रखना होगा कि हर एक व्यक्ति को मन के पार जाना है,क्योंकि मन ही संसार है। जब हम सोचते ...