मनुष्य की समझ और सम्भावनाएं
अ- अर्थ हमेशा किसी उच्चत्तम स्रोत से ही आता है,किसी वस्तु या व्यक्ति में स्वयं कभी कोई अर्थ नहीं होता है,वह तो हमेशा कहीं पार अज्ञात से आता है। जैसे एक बीज को ही देखें,जोकि अपने आप में अर्थहीन है,लेकिन अंकुरित होने पर वह अर्थपूर्ण हो जाता है। बीज के लिए तो वृक्ष होना ही उसका अर्थ है। लेकिन वृक्ष का अपने आप में तबतक कोई अर्थ नहीं है जबतक उस वृक्ष में फूल नहीं आते । अब वह वृक्ष मॉ बन गया है,अब उस वृक्ष ने कुछ नयॉ जन्म दिया है।वह वृक्ष अब महत्वपूर्ण बन गया है। इसीलिए तो वह वृक्ष फूलों का इन्तजार कर रहा था । लेकिन फूलों का भी अपने आप में तबतक कोई महत्व नहीं है जब तक हवाओं द्वारा उसकी सुगन्ध को दूर-दूर तर न बिखेर दे। फूल तभी अर्थपूर्ण होगे।
2-मनुष्य एक विकास है
अ- लेकिन मनुष्य स्वयं अपने आप में समाप्त नहीं होता,बल्कि वह एक विकास है।कुछ बनना,विकसित होना,निरंतर उस पार जाने का। नीत्शे ने कहा है कि मनुष्य में हर दम उच्चतम् लक्ष्य की ओर जाने की प्रवृत्ति होती है। इसलिए यह उस मनुष्य पर निर्भर है कि उसका जीवन अर्थपूर्ण है या अर्थहीन,यह सबकुछ उसी पर निर्भर है,क्योंकि धर्म में जीवन की दिशा को पहले से ही कोई अर्थ नहीं दिया गया है। बस केवल सम्भावना और अवसर हैं,यह सम्भावित शक्ति मनुष्य के पास है। चाहो तो मनुष्य फूल बनकर एक अर्थपूर्ण अस्तित्व बना सकता है अथवा व्यर्थ हो सकता है। यदि वह उसे पूरा नहीं करता है तो कोई और दूसरा उसको पूरा नहीं कर सकता। वह सेवकों पर भी निर्भर नहीं रह सकता है। जीवन इतना अमूल्य है कि वह किसी दूसरे पर विश्वास भी नहीं कर सकता है। उसी को पूऱी स्थिति नियंत्रित करनी होगा। इसकी जिम्मेदारी उसी के कन्धों पर होगी।
ब- हम मनुष्य तभी बनेंगे जब तक हम अपने विकास के लिए स्वयं जिम्मेदार नहीं बनेंगे। और जिस दिन हम यह निर्णय लेंगे उस दिन हमारे जीवन के अर्थ के सृजन की नीव पड जायेगी। हम एक कोरे कागज हैं जिसमें हमें अपने हस्ताक्षर करना है,उसपर अपना गीत लिखना है,उसमें पहले से करोई गीत लिखा नहीं है,बल्कि इसे हमको ही लिखना है। ये गीत लिखना ही नहीं है बल्कि गाना और गुन गुनाना भी है। हमें को नृत्य करना है। एक बीज वृक्ष नहीं बन जाता,तबतक वह केवल एक नाम है,बीज है ही नहीं। जब तक एक वृक्ष फलता फूलता नहीं है,तबतक वह केवल नाम भर का वृक्ष है,वृक्ष कहने के योग्य नहीं है। इसी प्रकार जबतक फूल सुगन्ध नहीं विखेर लेता तब तक वह नाम भर का फूल है।
हम अपना अस्तित्व निरंतर सृजित करते रहे हैं,यदि हम ऐसा नहीं कर सकते हैं तो हम उस लकडी के तने के समान है जो बहती धारा में दिशा विहीन होकर बहती है।
3-मनुष्य की समझ और सम्भावनाएं
मनुष्य के पास सीढी की सभी पायदानों पर चढने के लिए समझ और पर्याप्त सम्भावनाएं है,अखण्ड दृष्टिकोंण होता है। अगर देखें तो कई विद्वानों ने इस बात को स्वीकार किया है कि पहला पायदान सेक्स ऊर्जा के प्रति भावोद्वेगहै जिसने कि मनुष्य को हमेशा भ्रमित किया है। और यह सेक्स तभी अर्थपूर्ण है जब वासना से प्रेम उत्पन्न हो,प्रार्थना का जन्म हो। सेक्स एक ऊर्जा है,उसे रूपान्तरित किया जाना है। यह एक कच्ची सामग्री की भॉति है,उस पर कुछ काम किया जाना है। वह तो खान से निकले हीरे के समान है,अब उसको तराशकर उसपर पालिस करनी है,तुम्हैं उसे सुन्दर रूप और आकृति देनी है,नूतन सौदर्य देना है। यह तुम पर निर्भर है कि खदान से निकले इस हीरे का उपयोग किस रूप में करते हो। लेकिन यदि सेक्स को वासना तक ही सीमित रखते हो तो तुम नष्ट हो जाओगे,उसी में खोकर रह जाओगे।क्योंकि वासना नदी में तट या किनारे होते ही नहीं हैं और यदि तुमने उसमें डुबकी लगाई तो तुम उसी में खो जाओगे। इसलिए तुम्हैं इससे ऊपर उठना है।
4-मनुष्य एक बीज की भॉति है
अ- एक धार्मिक मनुष्य वह होता है,जिसका बीज सही ढंग से भूमि तक पहुंच जाता है,और उसमें विलुप्त हो जाता है। क्योंकि जब बीज मिटता है तभी वृक्ष का जन्म होता है। इसी प्रकार जब तुम विसर्जित हो जाते हो,तभी आत्मा का जन्म होता है।विन्र मनुष्य वही है जो पृथ्वी के अन्दर जाकर मिटने को तैयार है। विनम्र वह है जो अपने को खो देने को तैयार है।
ब- जीसस बार-बार कहते हैं कि,यदि तुम अपने को मिटाते नहीं हैं,खोते नहीं हैं तो उसे प्राप्त नहीं कर सकते हो।और यदि तुम अपने को खोते नहीं तो, फिर कभी भी होने की अनुभूति नहीं कर सकोगे।। यही कहा जायेगा कि धन्य हैं वे लोग जो खोने और मिटने को तैयार हैं। अर्थात धन्य है वह बीज जो अपने सख्त सख्त छिलके के खोल को मिटाने के लिए आघात सहने को तैयार हो जाता हैं। मिट्टी के लिए अपने कोमल ह्दय का द्वार खोल देता है,जिससे मिट्टी उस पर अपना कार्य कर सके.और उसे अज्ञात की ओर ले जाय,जोकि ज्ञात के साथ अपनी प्रतिबद्धता समाप्त कर अज्ञात के प्रति प्रतिबद्ध हो जाता है।
स- कभी-कभी एक छोटा सा बीज भी पूरे संसार के खतरा बन जाता है,लेकिन बीज के लिए वहॉ कोई खतरा नहीं होता है।बीज बन्द होता है,बिना खिडकी दरवाजे के पूरी तरह,वह एक सुरश्रित कैदी होता है। लेकिन एक नन्हॉ सा पौधा बहुत नाजुक होता है,इसका निरीक्षण करने की आवश्यकता है,कि बीज तो बहुत कठोर और सुरक्षित है मगर पौधा है बहुत कोमल और नाजुक,जो कि आसानी से नष्ट हो सकता है। और फूल तो और भी नाजुक है जो एक सपने जैसा नाजुक एक कविता की तरह नाजुक। यह सारा विकास अज्ञात की ओर उन्मुख,अदृष्य की ओर उन्मुख है। केवल स्थूल दिखाई देता है,परमात्मा अदृश्य है। पदार्थ द्श्यमान है,मन अदृश्य है। केवल स्थूल का ही स्पर्श किया जा सकता है। यही तो कारण है कि परमात्मा को देखा नहीं जा सकता है।
5-स्थूल के साथ सूक्ष्म का अस्तित्व
अ- यह भी देखा गया है कि स्थूल के साथ सुरक्षा होती है। प्रेम की अपेक्षा वासना अधिक सुरक्षित है,प्रार्थना की अपेक्षा प्रेम अधिक सुरक्षित है। और यदि सुरक्षा की ओर ही ध्यान है तो, तुम वासना तक ही सीमित रह जाओगे। लेकिन होता क्या है कि बहुत से लोग सैक्स में ही जन्मते हैं और सैक्स में ही मर जाते हैं। इसका मचतलब यह हुआ कि यह कोई फैलाव या विकास हुआ ही नहीं। सेक्स में जन्म लेना तो स्वाभाविक है,लेकिन उसमें मरने का अर्थ क्या हुआ? यदि तुम विकसित नहीं हुये तो कुछ भी नहीं घटा तुम्हारे साथ?
ब- यह भी देखा गया है कि उम्र बढती जाती है तो कुछ लोग ऐसे है जो अधिक जीने की तमन्ना रखते चले जाते हैं। एक वृद्ध नब्बे वर्ष की उम्र का, डाक्टर के पास अपनी शिकायत रखता है कि डाक्टर में नपुंसक हो गया हूं। डाक्टर ने उसकी ओर देखकर कहा कि-लेकिन आपने इस बात को पहली बार कब नोट किया?वृद्ध का उत्तर था कि पिछली रात और फिर आज सुबह । लोग इस तरह जीते चले जा रहे हैं,लेकिन जो लोग वासना में जितने अधिक समय तक जीते रहेंगे उनका अस्तित्व उतना ही कुरूप होता जायेगा।। जन्म तो कोई बात नहीं लेकिन मृत्यु सेक्स में नहीं होनी चाहिए ।
स- एक बार मुन्ना अपनी मम्मी की प्रतीक्षा में था होमवर्क पूरा करना था,जैसे ही मम्मी आई तो मुन्ना ने मम्मी से पूछा और कहा मम्मी मेरा जन्म कैसे और कहॉ हुआ ?अरे बेटा सफेद पैरों वाली पक्षी तुम्हैं इस दुनियॉ में लायी था। और आप कहॉ से जन्मी ?सफेद पंख वाली पक्षी भी मुझे इस दुनियॉ में लायी। दादी कहॉ से आई ?तेरी दादी झाडी के नीचे पाई गई । मुन्ने में इसे अपने निबन्ध में लिख दिया कि ऐसा लगता है कि तीन पीढी से मेरे परिवार में स्वाभाविक रूप से किसी का जन्म नहीं हुआ। इसलिए सेक्स में जन्म लेना स्वाभाविक है, मगर सेक्स में मृत्यु होना अस्वाभाविक है क्योंकि बीज से प्रारम्भ कर सुवास तक की यात्रा ही विकास है। लेकिन कुछ लोग हैं कि वे दोहराने वाले चक्र में जीते है,वे एक ही चक्राकार मार्ग घूमते हुये व्यस्त रहते हैं। एक पहिए की तरह।उनके जीवन का भी कोई अर्थ नहीं होता है।
6-जीवन को अर्थमय बनाएं
अ- यदि आप अपने जीवन को निरन्तर अर्थमय बनाना चाहते हैं तो तुम्हैं विकसित होते चले जाना है,यदि तुम रुककर खडे गो गये,तो अर्थ तुरन्त मिट जायेगा,क्योंकि रुकना जडपूर्ण है,जबकि अर्थ में प्रवाह है,अर्थ विकसित होने में है। जैसे नदी बहती है तो वह साफ रहती है,लेकिन जब नदी का प्रवाह रुक जाता है,तो प्रवाह हीन हो जाती है।
ब- प्रार्थना जरूरी है,जो कि कही अधिक ऊंची चीज है,प्रार्थना ही अन्तिम है,इसे परिभाषित तो किया जा सकता है मगर पूर्णरूप से नहीं। बस वह क्षितिज है ,लेकिन ऐसा भी नहीं कि क्षितिज पर जाकर पृथ्वी समाप्त हो जाती है,और ऐसा भी नहीं कि क्षितिज पर जाकर आकाश समाप्त हो जाता ह,बल्कि क्षितिज हमें अपनी सीमां का दिग्दर्शन कराता है। बस यही कि हमारी दृष्टि उससे और आगे नहीं जाती ।
स- यह देखा जा रहा है कि लोग मृत हैं क्योंकि वे रुक कर जड होकर रह गये हैं। वे एक ही चीज बार-बार खोज रहे हैं । एक व्यक्ति को नयें तलाश की खोज होनी चाहिए ,तभी वह ताजा बना रहता है,उसे फिर से युवा बना देता है। यदि आज तुम्हैं कोई सुंदर अनुभव हुआ है,तो कल उसे फिर मत मॉगो,क्योंकि अब तुमने उसे जान लिया है,वह अर्थ हीन हो गया है,किसी नईं चीज की खोज करो,अज्ञात और अपरिचित को टटोलो। किसी अक चीज की पुनरावृति नहीं,क्योंकि पुनरावृत्ति सुन्दरता की हत्या कर देती है। इससे उस वस्तु से ऊब उत्पन्न होती है,और यदि बार-बार ऊबने की आदत होने से तुम मृत हो जाते हो। लेकिन होता क्या है कि लोग किसी बात को दोहराये चले जाते हैं,ऐसा लगता है कि उनकी आंखें पूरी तरह बन्द हैं,जैसे कि उनके पास कोई विचार या योजना ही न हो। जैसे कि उन्होंने कभी ऊंचैाइयों की ओर देखा ही न हो। आकाश की ओर भी नहीं देखा। वे लोग कीचड में रेंगते जा रहे हैं।
7-वासना का प्रेम तुम्हारी पीडा बन सकती है
अ- आपने यह तो महसूस किया होगा कि वासना की सरिता जिसे तुम प्रेम कहते हो,वह तुम्हारे लिए पीडा के सिवा और कुछ भी नहीं ला सकता है। वह प्रेम तुम्हैं नर्क के सिवा और कुछ नहीं देता । लेकिन फिर भी तुम किसी तरह उसमें बने रहते हो। उससे पार देखने की व्यवस्था नहीं कर पाते। एक बार पुत्र ने अपने विद्वान पिता जी से कहा ..पिता जी मैं विवाह करना चाहता हूं ।पिता जी ने पुत्र से कहा मेरे बच्चे नहीं अभी तुम बुद्धिमान नहीं हो। पुत्र ने पूछा मैं कब बुद्धिमान बनूंगा? पिता का उत्तर था,जब तक इस विचार से पीछा छुडा लोगे कि तुम विवाह करना चाहते हो,तभी तुम यथेष्ठ बुद्धिमान समझे जाओगे,फिर तुम शादी कर सकते हो।
ब- कुछ लोग कामुकता की राह में सौदर्य की खोज में लगे रहते हैं,सदैव वे भ्रमित रहते हैं, जबकि वह सौदर्य की खोज नहीं है,प्रेम की खोज नहीं है,और न ही परमात्मा की खोज है। वह तो अधिक से अधिक वह एक जैविक और प्राकृतिक विधि है जिससे तुम अपने आप को उसमें डुबो सकते हो।वह तुम्हारे लिए एक शराब का तीखा स्वाद भी बन सकता है।
स- सेक्स तो एक रसायन है,जो कि तुम्हारे शरीर में विशिष्ठ हारमोन्स छोडता है। वह तुम्हैं एक विशिष्ठ भ्रमपूर्ण अच्छा लगने का भाव देता है। वह तुम्हें कुछ ऐसे क्षण देता है जिसमें तुम संसार का शिखर अनुभव कर सकते हो। लेकिन तब फिर तुम घाटी में वापस लौटते हो और घाटी पहले से भी अधिक अंधेरी और कुरूप लगती है,जैसे मानो तुम्हैं चालाकी से ठग लिया गया है। सेक्स तुम्हें एक ऐसा भ्रम देता है जैसा मानो कोई चीज घट रही है।यदि तुम सेक्स में ही सीमित होकर रह जाते हो तब तुम अपनी ऊर्जा का मात्र अपव्यय करते हो।धीरे-धीरे ऊर्जा तुममें से निकलती चली जायेगी और तुम केवल एक मृत खोल रह जाओगे।
द- इस संसार में बहुत थोडे लोग हैं जो इस महॉन अवसर का प्रयोग अपने विकास में करते हैं,अपने उठाये गये कदमों का हर पल निरीक्षण करते रहना होगा, क्योंकि तुम्हैं विकसित होने के लिए एक विशिष्ठ अवसर दिया गया है,यदि तुम विकसित नहीं हुये तो तुम अपने आप को जीवंत नहीं कर सकते हो। यदि तुम सजग नहीं हो,तुम गहरी नींद में ही सोये हो,एक मूर्छित अवस्था में जैसे हो,तुम जैसे सोये हुये ही चलते-फिरते और काम करते हो। और सेक्स को जैसे नींद की गोली की तरह उपयोग करते हो ,तभी वे प्रेम करते हैं,और तभी वे अच्छी तरह से सो पाते हैं।इस ऊर्जा के निष्कासित होने होने के बाद वे खाली होकर गहरी बेहोशी में डूब जाते हैं। यह नींद असली नींद नहीं है-यह तो केवल थकावट की मूर्छा है,वह एक रिक्तता है।यह ऊर्जा से भरी नींद है।यह नींद जीने के लिए जैसी नहीं, बल्कि मृत्यु के समान है।
8-अपनी ऊर्जा का सही दिशा में प्रयोग करें-
अ- अगर हम अपने महान लोगों के विचारों को देखें तो पायेंगे कि सभी ने अपने शरीर की ऊर्जा का सही दिशा में प्रयोग पर बल दिया है। और खासकर काम की ऊर्जा का उपयोग ।इस मूर्छा से बाहर निकलने का एक ही मार्ग है और वह है परमात्मा को याद करना,नाम स्मरण। प्रेम के पथ पर यह हमेशा ही एक बुनियादी विधि रही है।जब भक्त गहरी आस्था से परमात्मा के नाम का स्मरण करता है तो उसका पूरा स्तित्व पुलकित और रोमॉचित हो उठता है,और उसकी ऊर्जा तेजी से ऊर्ध्वागामी होने लगती है।वैसे समान्यतः ऊर्जा नीचे की ओर प्रवाहित होती है,और यही सेक्स ऊर्जा का निष्कासित मार्ग है। वास्तव में यदि तुम अश्रुपूरित नेत्रों से परमात्मा का नाम लेते हो,चाहे वह कोई भी नाम हो -तो उसी पुकार और उसी स्मरण से सातवॉ चक्र सहस्रार के भेदन से सदा शिव से योग हो जाता है।
ब- यदि गहरे प्रेम,श्रद्धा और भक्ति के साथ तुमने उसका नाम पुकारा है तो अकस्मात् तुम्हारे शरीर की ऊर्जा में एक परिवर्तन होता है कि सेक्स की वह ऊर्जा जो तुम्हारे शरीर में गतिशील थी,अब ऊपर की ओर उठना प्रारम्भ हो जाता है। काम की यह ऊर्जा वेग से ऊपर की उठना शुरू हो जाती है,फिर इस ऊर्जा पर गुरुत्वाकर्षण शक्ति का कोई प्रभाव नहीं पडता है। यह ऊर्जा दूसरे नियम के अधीन कार्य करती है,और वह ऊर्जा है-अनुग्रह का,जब तुम ऊपर की ओर जाने लगते हो,मानो आकाश ही तुम्हैं ऊपर की ओर खींच रहा है,तब व्यक्ति पूरी तरह से भिन्न एक दूसरे संसार को जानने लगता है। कबीर ने इसी बात का वर्णन किया है कि जब उन्हैं ऐसा हुआ तो उन्होंने देखा कि सागर जल रहा है,और अग्नि बहुत शीतल है,मछलियॉ सूखी जमीन पर दौड रही हैं,उन्होंने ऐसे वृक्ष देखे कि जिनकी जडें आकाश में थी और शाखाएं पृथ्वी की ओर आ रही हैं । अर्थात काम ऊर्जा जब ऊर्ध्वागामी गति से ऊपर की ओर उठती है तो पूरी तरह से एक नयें संसार का भरोसा खुलता है। तब वे इस संसार को नहीं देखते,क्योंकि तुम्हारे नेत्र इस धर के विरोधी एक नये आयाम में होते हैं।
9-जीवन में सेक्स ऊर्जा का सम्बन्ध-
अ- हमारे कुछ विद्वानों तो जीवन की पूरी धारणॉ को ही सेक्स से जोड दिया है, जो कि उपयुक्त नहीं है,उन्होंने जीवन के एक ही पक्ष की ओर देखने का प्र यास किया है। उनका तर्क है कि जीवन की धारणॉ और विचार सेक्स केन्द्रित होती है। हम जो कुछ भी करते हैं,जैसे धन कमाते हैं या प्रसिद्धि पाने का प्रयास करते हैं,सबका सम्बन्ध सेक्स से होता है। लेकिन यह जानना थोडा कठिन है कि वह सेक्स के पीछे कैसे दौड रहा है।
ब- अगर एक मनोवैज्ञानिक से पूछें तो,उनका तर्क होगा कि महिलाएं किसी अन्य चीज की अपेक्षा प्रसिद्धि के लिए अधिक आकर्षित होती हैं,वे सुन्दर चेहरे की ओर उतनी आकर्षित नहीं होती हैं,जितनी कि उपलब्धि से आकर्षित होती हैं। स्त्री ऐसे व्यक्ति की ओर आकर्षित होती है,जिसके पास अधिक धन,शक्ति,प्रतिष्ठा हो। उस व्यक्ति को स्त्री पसन्द करती है जिसके सामने वह झुक सके। यदि पुरुष सुन्दर है लेकिन शक्तिहीन है तो उसे पसन्द नहीं करती है,इसलिए कि, वह उस स्त्री को सुरक्षा का गारण्टी नहीं दे सकता है। और यदि वह शक्ति सम्पन्न है मगर सुन्दर तथा बुद्धिमान नहीं है ,इससे कोई फर्क नहीं पडेगा,शक्तिशाली और विश्वसनीय हो तो स्त्री उसके सामने झुक जाती है। क्योंकि उसमें उसके लिए एक निश्चित गारण्टी है।
स- इसी प्रकार पुरुष भी ऐसी स्त्री की ओर आकर्षित होते हैं,जिसका शारीरिक सौंदर्य और शरीर के अंगों का संतुलन अधिक आकर्षित होता है,जबकि स्त्री –प्रसिद्धि,प्रतिष्ठा,शक्ति और पुरुष की उपलव्धियों से आकर्षित होती है। इसी लिए पुरुष हमेशा शक्ति और सत्ता के पीछे पागल होता है।उन लोगों के सम्बन्ध में यह देखा गया है कि यदि मृत्यु भी सामने खडी हो या खतरा सामने खडा है,फिर भी लोग सेक्स का पीछा नहीं छोडते हैं।
10-वासना की पकड-
अ- अगर देखें तो वासना की पकड इतनी मजबूत होती है कि वह खतरे को भी नहीं देखता। सामने खडी मृत्यु को भी नहीं देख सकता। बहुत अजीव घटना देखनी को मिलती है। वृद्ध लोग सेक्स में गतिशील होने में भले ही समर्थ न हों,लेकिन वे तब भी अपनी कल्पनाओं में गतिशील हो जाते हैं।
ब- ऐसे कम लोग हैं जो परमात्मा का नाम लेकर मरते हैं ,इसलिए कि सेक्स के पार जाने के लिए कठिन परिश्रम नहीं करते हैं। अगर तुम उसके पंजों से मुक्ति के लिए कठिन संघर्ष नहीं कर सकते हो तो ऐसा ही होना है। क्योंकि जन्म सेक्स में लिया तो मरते वक्त भी सेक्स की कल्पना रहती है। और अब अंतिम क्षण आ गया,अब शरीर विसर्जित होने जा रहा ह,यह ऊर्जा का अंतिम शक्ति परीक्षण है,यदि मरते वक्त सेक्स के चिन्तन में मरते हो तो, फिर जीवन चक्र में घूमते हुये फिर आओगे। यदि तुम मनुष्य के अन्दर देखना चाहते हो तो तुम्हैं रूप और सौन्दर्य के घर जाना चाहिए।
11-प्रेम में अधिक सौन्दर्य है-
अ- वासना कुरूप है,सौन्दर्यबोध नहीं है जबकि प्रेम में अधिक सौन्दर्य बोध है। आप इसका निरीक्षण कर सकते हो कि यदि कोई तुम्हारी ओर वासना की दृष्टि से देखता है, तो क्या तुमने उसका चेहरा देखा है?वह कुरूप हो जाता है।जब आंखों में वासना होती है,तो ,सुन्दर चेहरा भी कुरूप हो जाता है। और यदि एक कुरूप चेहरे में प्रेम होता है तो वह सुन्दर बन जाता है। आंखों में प्रेम होने से चेहरे को पूरी तरह से एक नयॉ रंग मिल जाता है,एक भिन्न प्रभा मण्ङल उत्पन्न हो जाता है।वासना का आभा मण्डल तो काला और कुत्सित होता है।
ब- रवीन्द्रनाथ टैगोर ने कहा है कि-सौन्दर्य ही सत्य है।यदि तुम सुन्दरता की खोज करोगे तो सत्य को उपलव्ध हो जाओगे ।तुम्हारे अन्दर जितना अधिक सौन्दर्यबोध होगा,तुम सुन्दरता के प्रति जितने अधिक संवेदनशील होंगे,तुम उतने ही सन्तुलित और लयबद्ध होते जाओगे क्योंकि सुन्दरता परमात्मा की सम्पत्ति है। स-तुम यदि स्त्री को वासना की दृष्टि से देखते हो,तो तुम केवल शरीर देखते हो,पदार्थ या कोई भाग देखते हो। और यदि तुम उसे प्रेम से देखते हो,तो तुम कुछ चीज उसमें ऐसी देखते हो,जो पदार्थ नहीं है,बल्कि वह आत्मिक है। यदि तुम स्त्री को प्रार्थना की दृष्टि से देखते हो,तो तुम पूरी तरह से किसी दिव्य रूप को या देवी को ही देख रहे हो। यह तुम्हारी दृष्टि पर निर्भर करता है । वासना की दृष्टि से तुम स्त्री के शरीर के कुछ भाग को देखते हो,प्रेम की दृष्टि से स्त्री की आत्मा को देखते ह,और प्रार्थना की दृष्टि से वह दिव्य दिखाई देती है।वह परमात्मा के रूप में ही दिखाई देती है।
12-परमात्मा का स्वरूप-
अ- परमात्मा का अर्थ है समग्रता,जब तुम परमात्मा के निकट जाओगे तो तुम खोते नहीं हो बल्कि पाओगे । प्रारम्भ में ऐसा लगता है कि कुछ चीज खोती जा रही है,लेकिन परमात्मा में सब कुछ समाहित है. परमात्मां में वासना भी समाहित है,लेकिन पूर्णतः रूपान्तरित। परमात्मा में पदार्थ भी है लेकिन वह शुद्ध और पवित्र बन जाता है।कोई भी एक रहता तो संसार में है,लेकिन उसका होकर नहीं रहता है।परमात्मा स्वयं है इस संसार में,पर वह संसारिक नहीं है। संसार तो उसी के अधिकार और नियंत्रण में रहता है,लेकिन वह संसार के नियंत्रण में नहीं रहता।

अ- अगर हम अपने महान लोगों के विचारों को देखें तो पायेंगे कि सभी ने अपने शरीर की ऊर्जा का सही दिशा में प्रयोग पर बल दिया है। और खासकर काम की ऊर्जा का उपयोग ।इस मूर्छा से बाहर निकलने का एक ही मार्ग है और वह है परमात्मा को याद करना,नाम स्मरण। प्रेम के पथ पर यह हमेशा ही एक बुनियादी विधि रही है।जब भक्त गहरी आस्था से परमात्मा के नाम का स्मरण करता है तो उसका पूरा स्तित्व पुलकित और रोमॉचित हो उठता है,और उसकी ऊर्जा तेजी से ऊर्ध्वागामी होने लगती है।वैसे समान्यतः ऊर्जा नीचे की ओर प्रवाहित होती है,और यही सेक्स ऊर्जा का निष्कासित मार्ग है। वास्तव में यदि तुम अश्रुपूरित नेत्रों से परमात्मा का नाम लेते हो,चाहे वह कोई भी नाम हो -तो उसी पुकार और उसी स्मरण से सातवॉ चक्र सहस्रार के भेदन से सदा शिव से योग हो जाता है।
ब- यदि गहरे प्रेम,श्रद्धा और भक्ति के साथ तुमने उसका नाम पुकारा है तो अकस्मात् तुम्हारे शरीर की ऊर्जा में एक परिवर्तन होता है कि सेक्स की वह ऊर्जा जो तुम्हारे शरीर में गतिशील थी,अब ऊपर की ओर उठना प्रारम्भ हो जाता है। काम की यह ऊर्जा वेग से ऊपर की उठना शुरू हो जाती है,फिर इस ऊर्जा पर गुरुत्वाकर्षण शक्ति का कोई प्रभाव नहीं पडता है। यह ऊर्जा दूसरे नियम के अधीन कार्य करती है,और वह ऊर्जा है-अनुग्रह का,जब तुम ऊपर की ओर जाने लगते हो,मानो आकाश ही तुम्हैं ऊपर की ओर खींच रहा है,तब व्यक्ति पूरी तरह से भिन्न एक दूसरे संसार को जानने लगता है। कबीर ने इसी बात का वर्णन किया है कि जब उन्हैं ऐसा हुआ तो उन्होंने देखा कि सागर जल रहा है,और अग्नि बहुत शीतल है,मछलियॉ सूखी जमीन पर दौड रही हैं,उन्होंने ऐसे वृक्ष देखे कि जिनकी जडें आकाश में थी और शाखाएं पृथ्वी की ओर आ रही हैं । अर्थात काम ऊर्जा जब ऊर्ध्वागामी गति से ऊपर की ओर उठती है तो पूरी तरह से एक नयें संसार का भरोसा खुलता है। तब वे इस संसार को नहीं देखते,क्योंकि तुम्हारे नेत्र इस धर के विरोधी एक नये आयाम में होते हैं।
9-जीवन में सेक्स ऊर्जा का सम्बन्ध-
अ- हमारे कुछ विद्वानों तो जीवन की पूरी धारणॉ को ही सेक्स से जोड दिया है, जो कि उपयुक्त नहीं है,उन्होंने जीवन के एक ही पक्ष की ओर देखने का प्र यास किया है। उनका तर्क है कि जीवन की धारणॉ और विचार सेक्स केन्द्रित होती है। हम जो कुछ भी करते हैं,जैसे धन कमाते हैं या प्रसिद्धि पाने का प्रयास करते हैं,सबका सम्बन्ध सेक्स से होता है। लेकिन यह जानना थोडा कठिन है कि वह सेक्स के पीछे कैसे दौड रहा है।
ब- अगर एक मनोवैज्ञानिक से पूछें तो,उनका तर्क होगा कि महिलाएं किसी अन्य चीज की अपेक्षा प्रसिद्धि के लिए अधिक आकर्षित होती हैं,वे सुन्दर चेहरे की ओर उतनी आकर्षित नहीं होती हैं,जितनी कि उपलब्धि से आकर्षित होती हैं। स्त्री ऐसे व्यक्ति की ओर आकर्षित होती है,जिसके पास अधिक धन,शक्ति,प्रतिष्ठा हो। उस व्यक्ति को स्त्री पसन्द करती है जिसके सामने वह झुक सके। यदि पुरुष सुन्दर है लेकिन शक्तिहीन है तो उसे पसन्द नहीं करती है,इसलिए कि, वह उस स्त्री को सुरक्षा का गारण्टी नहीं दे सकता है। और यदि वह शक्ति सम्पन्न है मगर सुन्दर तथा बुद्धिमान नहीं है ,इससे कोई फर्क नहीं पडेगा,शक्तिशाली और विश्वसनीय हो तो स्त्री उसके सामने झुक जाती है। क्योंकि उसमें उसके लिए एक निश्चित गारण्टी है।
स- इसी प्रकार पुरुष भी ऐसी स्त्री की ओर आकर्षित होते हैं,जिसका शारीरिक सौंदर्य और शरीर के अंगों का संतुलन अधिक आकर्षित होता है,जबकि स्त्री –प्रसिद्धि,प्रतिष्ठा,शक्ति और पुरुष की उपलव्धियों से आकर्षित होती है। इसी लिए पुरुष हमेशा शक्ति और सत्ता के पीछे पागल होता है।उन लोगों के सम्बन्ध में यह देखा गया है कि यदि मृत्यु भी सामने खडी हो या खतरा सामने खडा है,फिर भी लोग सेक्स का पीछा नहीं छोडते हैं।
10-वासना की पकड-
अ- अगर देखें तो वासना की पकड इतनी मजबूत होती है कि वह खतरे को भी नहीं देखता। सामने खडी मृत्यु को भी नहीं देख सकता। बहुत अजीव घटना देखनी को मिलती है। वृद्ध लोग सेक्स में गतिशील होने में भले ही समर्थ न हों,लेकिन वे तब भी अपनी कल्पनाओं में गतिशील हो जाते हैं।
ब- ऐसे कम लोग हैं जो परमात्मा का नाम लेकर मरते हैं ,इसलिए कि सेक्स के पार जाने के लिए कठिन परिश्रम नहीं करते हैं। अगर तुम उसके पंजों से मुक्ति के लिए कठिन संघर्ष नहीं कर सकते हो तो ऐसा ही होना है। क्योंकि जन्म सेक्स में लिया तो मरते वक्त भी सेक्स की कल्पना रहती है। और अब अंतिम क्षण आ गया,अब शरीर विसर्जित होने जा रहा ह,यह ऊर्जा का अंतिम शक्ति परीक्षण है,यदि मरते वक्त सेक्स के चिन्तन में मरते हो तो, फिर जीवन चक्र में घूमते हुये फिर आओगे। यदि तुम मनुष्य के अन्दर देखना चाहते हो तो तुम्हैं रूप और सौन्दर्य के घर जाना चाहिए।
11-प्रेम में अधिक सौन्दर्य है-
अ- वासना कुरूप है,सौन्दर्यबोध नहीं है जबकि प्रेम में अधिक सौन्दर्य बोध है। आप इसका निरीक्षण कर सकते हो कि यदि कोई तुम्हारी ओर वासना की दृष्टि से देखता है, तो क्या तुमने उसका चेहरा देखा है?वह कुरूप हो जाता है।जब आंखों में वासना होती है,तो ,सुन्दर चेहरा भी कुरूप हो जाता है। और यदि एक कुरूप चेहरे में प्रेम होता है तो वह सुन्दर बन जाता है। आंखों में प्रेम होने से चेहरे को पूरी तरह से एक नयॉ रंग मिल जाता है,एक भिन्न प्रभा मण्ङल उत्पन्न हो जाता है।वासना का आभा मण्डल तो काला और कुत्सित होता है।
ब- रवीन्द्रनाथ टैगोर ने कहा है कि-सौन्दर्य ही सत्य है।यदि तुम सुन्दरता की खोज करोगे तो सत्य को उपलव्ध हो जाओगे ।तुम्हारे अन्दर जितना अधिक सौन्दर्यबोध होगा,तुम सुन्दरता के प्रति जितने अधिक संवेदनशील होंगे,तुम उतने ही सन्तुलित और लयबद्ध होते जाओगे क्योंकि सुन्दरता परमात्मा की सम्पत्ति है। स-तुम यदि स्त्री को वासना की दृष्टि से देखते हो,तो तुम केवल शरीर देखते हो,पदार्थ या कोई भाग देखते हो। और यदि तुम उसे प्रेम से देखते हो,तो तुम कुछ चीज उसमें ऐसी देखते हो,जो पदार्थ नहीं है,बल्कि वह आत्मिक है। यदि तुम स्त्री को प्रार्थना की दृष्टि से देखते हो,तो तुम पूरी तरह से किसी दिव्य रूप को या देवी को ही देख रहे हो। यह तुम्हारी दृष्टि पर निर्भर करता है । वासना की दृष्टि से तुम स्त्री के शरीर के कुछ भाग को देखते हो,प्रेम की दृष्टि से स्त्री की आत्मा को देखते ह,और प्रार्थना की दृष्टि से वह दिव्य दिखाई देती है।वह परमात्मा के रूप में ही दिखाई देती है।
12-परमात्मा का स्वरूप-
अ- परमात्मा का अर्थ है समग्रता,जब तुम परमात्मा के निकट जाओगे तो तुम खोते नहीं हो बल्कि पाओगे । प्रारम्भ में ऐसा लगता है कि कुछ चीज खोती जा रही है,लेकिन परमात्मा में सब कुछ समाहित है. परमात्मां में वासना भी समाहित है,लेकिन पूर्णतः रूपान्तरित। परमात्मा में पदार्थ भी है लेकिन वह शुद्ध और पवित्र बन जाता है।कोई भी एक रहता तो संसार में है,लेकिन उसका होकर नहीं रहता है।परमात्मा स्वयं है इस संसार में,पर वह संसारिक नहीं है। संसार तो उसी के अधिकार और नियंत्रण में रहता है,लेकिन वह संसार के नियंत्रण में नहीं रहता।
ब- ईसाई कहते हैं कि परमात्मा गुड-Good है-सुन्दर और भला है। यह शव्द गौड God से निकला है। गुड शव्द ही उसका मूल है। लेकिन जब परमात्मा सुन्दर है तो बुरे का क्या होगा,यह कहॉ जायेगा । इसमें वे स्पष्ट करते हैं कि इस बुरे के कारण ही उन्हैं शैतान बनाना पडा,और उसे अपने विरुद्ध स्वयं उकसाता है। तभी तो वह सर्वशक्तिमान है। अर्थात परमात्मा में सबकुछ समाहित है। वह अनेक में एक है।

Comments