ज्ञान के चक्षु का प्रभाव

1- यह देखा गया है कि कुछ लोगों को बुद्धत्व प्राप्त होने लगता है तो उनकी जिन्दगी का स्वरूप ही बदल जाता है। इस सम्बन्ध में कई प्रकार के उदाहरण हैं। जब कृष्ण को बुद्धत्व प्राप्त हुआ तो उन्होंने नाचना और गाना शुरू कर दिया,लेकिन महॉवीर ने ऐसा नहीं किया वे तो वर्षों तक मौन रहे। लेकिन मीरा ने ऐसा नहीं किया,जब उन्हैं बुद्धत्व उपलव्ध हुआ तो वे गॉव-गॉव जाकर नाचने लगी,उसने कृष्ण की महिमा के गाये। उसी प्रकार जब बाशो को बुद्धत्व उपलव्ध हुआ तो उसने कविता गाना शुरू किया । और ऐसे भी लोग हैं कि जिन्होंने बुद्धत्व प्राप्त होने पर इस संसार को ही छोड दिया। कुछ लोग हिमालय में चले गये । और कुछ लोग हैं जिन्हैं बुद्धत्व प्रप्त होने पर वे हिमालय से पुनः संसार में आ गये।
2- महॉन गुरु झेन-सद्गुरु के बारे में कहा जाता है कि वे बहुत साधारण जीवन विताते थे। वे स्वयं खाना बनाते थे लकडियॉ काटते थे। उनको समझने के लिए उन्हैं समझने की दृष्टि होनी चाहिए । वे कहते थे कि असाधारण बनने की खोज अहंकारपूर्ण है।केवल साधारण बनकर रहना ही एक धार्मिक व्यक्ति का असली व्यवहार होता है। असाधारण बनने की प्रवृत्ति ही बहुत साधारण है,क्योंकि प्रत्येक व्यक्ति असाधारण बनना चाहता है।
साधारण बनना ही बहुत साधारण है। जैसे महॉवीर स्वामी को जब बुद्धत्व प्राप्त हुआ तो वे नग्न हो गये । अब तो कोई भी नग्न हो सकता है,कुछ भी विशेष बात नहीं है। देखने वाली बात है कि कोई पागल भी ऐसा नहीं करता है। अगर नग्न लोगों की क्लब में जाएं तो वे महॉवीर नहीं हैं। इसी प्रकार बुद्ध को बुद्धत्व प्राप्त हुआ तो वे पद्मासन में बैठ गये तुम भी बैठ सकते हो, लेकिन तुम बुद्ध नहीं बन सकते हो। तुम हम तो सिर्फ अनुकरण कर सकते हैं,संसार में ऐसे लोगों की संख्या बहुत अधिक है।
3- अगर किसी मुनि को देखें तो पाओगे कि वह पूरी तरह अनुकरण करता है।
बुद्धत्व तो हमेशा नयॉ और ताजा होता है,यह अनुकरण नहीं होता है। वह तो हमेशा मालिक होता है। इसलिए वह कैसे व्यवहार करता है यह बताना कठिन है। लेकिन यह बताया जा सकता है कि यह कैसे ग्रहण किया जाय । और यह भी कि अगर आपको बुद्धत्व प्राप्त हो गया तो अचानक आपके अन्दर गहन मौन व्याप्त होगा,और बूंद-बूंद कर परम आनन्द की रसधार तुम्हारे स्तित्व के आन्तरिक केन्द्र पर वर्षा होने लगेगी।
4- अगर आप किसी बुद्धत्व प्राप्त व्यक्ति के अऩ्दर प्रवेश करने की अनुमति लेते हैं तो आपको स्पष्ट प्रमॉण सामने दिखाई देगा,। वे प्रमॉण कोई बुद्धिगत या मन के तर्क नहीं होंगे, बल्कि वह पूरे स्तित्व से प्रमॉण देता है,और ये प्रमाण उसकी उपस्थिति ही है। इसलिए उसकी उपस्थिति को किसी मापदण्ड से मत मापो बल्कि केवल महसूस करो। यही अनुभव करो कि वहॉ कोई ऐसा व्यक्ति है जो तुमसे अधिक जीवंत है,तुमसे अधिक दीप्तिवान है,तुमसे अधिक समझ वाला है और उससे करुंणॉ प्रवाहित हो रही है,यह वही है जिसको हम सत्संग कहते हैं,उसकी उपस्थिति में बने रहना है।
5-
बुद्धत्व पुरुष के पहुंचने से तुम किसी अज्ञात केन्द्र की ओर खिंचे चले जाते हो,और तुम्हैं एक अद्भुत सौंदर्य और आनन्द का अनुभव होगा। तुम्हैं ऐसा लगेगा कि जैसे आनन्द तुम पर चारों ओर से बरस रहा है। इसलिए अपने ह्दय के द्वार हमेशा खुले रखो । तुम्हैं स्वीकार भाव में रहना होगा, फिर बुद्धत्व का प्रमॉण इतनी दृढता से तुम तक आता है कि तुम प्रत्येक चीज से तो इंकार कर सकते हो,लेकिन बुद्धत्व व्यक्ति से इन्कार नहीं कर सकते हो । यहॉ पर सिद्ध करने का कोई उपाय नहीं है,और तुम्हारे लिए तो यह अनुभूति यदि स्थाई रूप से तुम्हारे अन्तरंग में उतर गई तो समझो एक लसेतु निर्मित हो गया। अब तुम पहले जैसे नहीं रह सकते। यही तुम्हारे बुद्धत्व की आधारशिला बन जायेगी। यह तुमको एक नईं दिशा,एक नयृ अस्तित्व और एक नयॉ जन्म दे गई।
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