स्वतंत्रता का अर्थ अधिक सजग होना है

1-            स्वतंत्रता का मतलव यह नहीं कि अब तुम्हारा कोई दाइत्व नहीं है। नीत्से ने घोषणॉ की थी कि परमात्मा मर चुका है और अब मनुष्य स्वतंत्र है। और इसके बाद अगला वाक्य लिखा था कि -अब तुम सब कुछ कर सकते हो,जो तुम करना चाहते हो । यहॉ पर यह बचन तर्कसंगत प्रतीत नहीं होता है। इसलिए कि हम उसके द्वारा सृजित प्राणी हैं,वह तो सृष्ठिकर्ता है। उसने ही हमारे अन्दर पाप और भ्रष्टाचार के बीज रखे,इसलिए जिम्मेदार वही है,हम तो स्वतंत्र है। और यदि अगर ईश्वर नहीं है तो तब मनुष्य अपने कार्यों के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार है। दूसरे पर जिम्मेदारी थोपने का कोई उपाय है ही नहीं।
 
 
 
2-            और यदि मैं तुमसे कहता हूं कि तुम स्वतंत्र हो,तो इसका मतलव यह हुआ कि तुम ही उत्तरदाई हो। तुम किसी दूसरे पर जिम्मेदारी नहीं डाल सकते हो,तुम ही अकेले जिम्मेदार हो। तुम जो कुछ भी करते हो,वह तुम्हारा ही कृत्य है। तुम यह नहीं कह सकते हो कि किसी अन्य व्यक्ति ने तुम्हैं वह सबकुछ करने को विवश किया था। क्योंकि तुम स्वतंत्र हो,इसलिए तुम्हैं कोई भी विवश नहीं कर सकता। लेकिन हमें इसे नहीं भूलना होगा कि स्वतंत्रता के साथ दायित्व भी आता है।क्योंकि यदि तुम स्वतंत्र हो तो कुछ भी चीज करने या न करने का तुम्हारा ही दायित्व है। लेकिन यह मन इसका अपना अलग ही अर्थ लगाता है।वह हमेशा वही सुने चला जाता है जो कुछ वह सुनना चाहता है। वह हर चीज की व्याख्या और अर्थ अपने ढंग से निकाले चले जाता है। मन कभी यह समझने का प्रयास करता ही नहीं कि वास्तव में सत्य क्या है। वह तो पहले से ही निर्णय ले चुका होता है ।
 
 
3-            लोग स्वतंत्रता के बारे में बातें करते हैं,लेकिन स्वतंत्रता को यथार्त रूप में नहीं चाहते हैं,वे तो मुक्त होना चाहते हैं। वे स्वतंत्रता के लिए कहते जरूर हैं, लेकिन अपने गहरे अचेतन में जिम्मेदार न होने का लाइसेंस लेना चाहते हैं। स्वतंत्रता केवल तभी संभव है जब तुम इतने ईमानदार हो जाओ कि तुम स्वतंत्र होने की जिम्मेदारी उठा सको।यह संसार स्वतंत्र नहीं है,क्योंकि लोग अभी पूरी तरह विकसित नहीं हैं। सदियों से इसके लिए बहुत से प्रयास करते रहे हैं,लेकिन लेकिन उनके सभी प्रयास असफल हो गये। निरंतर चिंतनशील व्यक्ति प्रयास करते रहे हैं कि मनुष्य को स्वतंत्र कैसे बनाया जा,लेकिन किसी को भी इस बात का खयाल नहीं है कि मनुष्य तब तक स्वतंत्र नहीं बन सकता,जबतक वह अखण्ड और ईमानदार न हो । केवल एक बुद्ध स्वतंत्र हो सकते हैं,महॉवीर स्वतंत्र हो सकते हैं,क्योंकि स्वतंत्रता का अर्थ है कि मनुष्य अब सचेत है । फिर राज्य की जरूरत,सरकार की जरूरत,पुलिस और कोर्ट कचहरी की जरूरत नहीं होगी । लेकिन स्वतंत्रता का अस्तित्व केवल नाम मात्र का है।सरकार का अस्तित्व है तो स्वतंत्रता का अस्तित्व कैसे हो सकता है? यह असंभव है । लेकिन फिर भी स्वतंत्रता की आवाज ऊंची होती सुनाई देती है।
 
 
4-            अगर सरकार न हो तो अराजकता होगी,सरकार के अभाव में स्वतंत्रता भी समाप्त हो जायेगी, चारों ओर अराजकता होगी। जो स्थिति इस समय दिख रही है इससे भी खराब दशा हो जायेगी। पुलिस की जरूरत इसलिए है कि तुम सजग नहीं हो,यदि लोग सजग हो जॉय तो पुलिस को हटाया जा सकता है,क्योंकि यह अनावश्यक होगा। इसलिए जब हम स्वतंत्रता की बात करते हैं तो इसका अर्थ जिम्मेदार बनने से होता है। तुम जितने अधिक जिम्मेदार बनते जाते हो,तुम उतना ही अधिक स्वतंत्र होते हो। अथवा तुम जितने अधिक स्वतंत्र बनते हो,तुममें उतनी ही अधिक जिम्मेदारी आती है। फिर तुम जो कुछ कह रहे हो,,तुम्हैं उसके लिए बहुत सजग होना होगा,इसलिए कि तुम्हें नियंत्रित करने वाला वहॉ और कोई व्यक्ति नहीं होगा ,केवल तुम ही होंगे। अर्थात जब में तुमसे कहता हूं कि तुम स्वतंत्र हो,तो मेरा अर्थ होता है कि तुम परमात्मॉ हो। स्वतंत्रता कुछ भी करने की अनुमति पत्र या लाइसेंस नहीं है,यह तो बहुत बडा अनुशासन है।

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