भौतिकवाद और आध्यात्मवाद का आमेलन
2-जीवन एक विचार मात्र नहीं है-
जीवन एक विचार मात्र नहीं है, बल्कि जीवन तो बहुत अधिक व्यवस्थित है। यह तो पूरा ब्रह्मॉण्ड है,यहॉ सभी कुछ एक क्रम में है।अव्यवस्था के पीछे भी वहॉ एक व्यवस्था है,बस उसे गहराई तक देखने के लिए आंखों की जरूरत है।हम इस परिधि पर उसे एक शरीर के सिवा और कुछ नहीं देख सकते हैं,ठीक उसी तरह जब तुम सागर के निकट जाते हो,तो उसके तट पर खडे हुये तुम सागर की गहराई को नहीं देख सकते हो,तुम तो केवल उसकी लहरें ही देख सकते हो। लेकिन सागर मात्र लहरें ही नहीं है,बल्कि विना सागर के लहरों का कोई अस्तित्व नहीं है,और बिना लहरों के भी सागर अस्तित्व में नहीं रह सकता है। ये लहरें सागर से पृथक नहीं हैं। सागर बहुत अधिक गहरा होता है,इसकी गहराई जानने के लिए सागर में गोता लगाकर गहराई का पता लगाया जा सकता है।
3-भौतिकवाद अर्द्ध सत्य है-
भौतिकवाद ने तो जीवन को पूर्णतः अर्थहीन बना दिया है। कोई जीवित रहे या आत्माहत्या कर दे,इससे कोई फर्क नहीं पडने वाला,क्योंकि जीवन और मृत्यु दोनों एक जैसे हैं। जीवन तो मरने का एक ढंग है। अगर तुम मरने जा रहे हो तो,तुम मरते कैसे हो, इससे कोई फर्क नहीं पडेगा,और जब तुम मर जाओगे इससे भी कोई अंतर नहीं पडेगा। इससे भी कोई फर्क नहीं पडेगा कि तुम कितनी अवधि तक जीवित रहे और मर गये। भौतिक वादी दृष्टिकोंण तो अर्द्ध सत्य है,और आधा सच तो बहुत खतरनाक होता है,झूठ से भी अधिक खतरनाक, उसमें थोडा सत्य होता है। इसलिए भी कि किसी चीज में थोडा होना ही बहुत धोखा है। पूरा झूठ इतना खतरनाक नहीं होता है,क्योंकि अधिक समय तक वह धोखा नहीं दे सकता है। पता लग जाता है कि यह झूठ है। इसे समझने में कोई कठिनाई नहीं होती है।
4-भौतिकवाद और आध्यात्मवाद में आमेलन-
इस किनारे भौतिकवाद है और दूसरे किनारे पर आध्यात्मवाद है। आध्यात्मवादियों की विचारधारा के लोगों के लिए वह क्षण जबकि आनन्द मनाने की बात आती है को व्यर्थ नष्ट नहीं करना चाहिए ।भविष्य की तैयारी करो,भविष्य के लिए वर्तमान का बलिदान कर दो। तुम्हारे पास जो कुछ भी है ,उसका भविष्य के लिए त्याग कर दो,यही अपने आप में एक पक्का आस्वासन देता है। जीवन को निरंतर सत्य की ओर गतिशील रखो। यहॉ कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं है,जो कुछ भी है वहॉ है।दूसरा किनारा ही महत्वपूर्ण है,तुम्हें उसी किनारे पर जाना है। वास्तविक जीवन तो उसी किनारे पर है,इस किनारे पर तो केवल भ्रम और भुलावे हैं। इस किनारे पर प्रशन्न मत रहो,क्योंकि यदि तुम इसी किनारे पर आनन्द मनाते रहे तो इसे कैसे छोडोगे। यह तट दुखः और पीडाओं का है,यह तट जीवन का नहीं,मृत्यु का है । इस तट पर पापों का ढेर है,इसलिए यहॉ उदास बनकर रहना होगा,यहॉ किसी भी चीज के प्रति आशक्ति मत रखो,किसी व्यक्ति के प्रेम में न पडो। इस तट के सौन्दर्य के साथ प्रेम न करो,सदा सजग बने रहो,दूसरे तट का ही स्मरण करो।
लेकिन भौतिकवादी इस बात को स्वीकार नहीं करते हैं कि दूसरा किनारा महत्वपूर्ण है। उनका मत है कि यह किनारा भी जिन्दगीं के दूसरे किनारे के समान महत्वपूर्ण है। इस तट का सौदर्य.,इस तट का गीत और काव्य भी दूसरे तट के गीतों और काव्यों के समान दिव्य हैं,इस क्षण का भविष्य के लिए बलिदान करना मूर्खतापूर्ण है,क्योंकि जैसा क्षण इस समय है वैसा ही इस क्षण भविष्य का भी होगा। दूसरा तट भी इसी तट के समान होगा। इन आध्यात्मवादियों ने मनुष्यता के मन को प्रदूषित कर दिया है।
5-भौतिकवाद और आध्यात्मवाद दोनों जरूरी है-
अ- भौतिक वाद इस छोर पर माना गया है जबकि आध्यात्मवाद को उस छोर पर।भौतिकवादियों का यह तर्क कि यह क्षण ही सबकुछ है उपयुक्त नहीं है,लेकिन यह कि यह क्षण कुछ भी नहीं है यह भी गलत है। वे कहते हैं कि जीवन एक तैयारी है,लेकिन यह तैयारी और कुछ भी नहीं बल्कि इस क्षण के प्रति आनंदित बने रहना है। इसे तुम नहीं समझते हो तो तुम या तो इस छोर की अति के शिकार बन जाओगे अथवा आधे-आधे दोनों छोरों के शिकार बन जाओगे। मनुष्य इस तरह के विचारों,अनुभवों,और कार्यों के मध्य सम्बन्ध न जोड सकने से दुविधाग्रस्त हो जाता है,जिसे सीजोफ्रेनियॉ कहते हैं। यह कोई मानसिक वीमारी नहीं है बल्कि थोडे से लोगों में घटने वाली व्याधि है। इसमें प्रत्येक व्यक्ति विभाजित और अखण्डित है। इसे तुम अपने ही जीवन में देख सकते हो। जब तुम किसी पुरुष या स्त्री से प्रेम में नहीं होते हो तो तुम प्रेम के सम्बन्ध में दिवास्वप्न देखने लगते हो ,जैसे कि कल्पना में प्रेम ही जीवन का लक्ष्य बन जाता है।और जब तुम किसी पुरुष या स्त्री से प्रेम कर रहे होते हो,तो अचानक तुम आध्यात्म की भाषा में सोचना शुरू कर देते हो,कि यह आसक्ति है,यह अपरिग्रह है,यह वासना है अर्थात उसके प्रति निन्दा के भाव उठने लगते हैं।
ब- तुम न अकेले रह सकते हो और न तुम किसी के साथ रह सकते हो। यदि तुम अकेले रहते हो तो तुम्हारे अन्दर दूसरों या भीड के लिए उत्कंठ होती है,और यदि तुम किसी भीड में होते हो तो तुम अकेले रहने के लिए व्यग्र होते हो। इस तथ्य में कुछ चीज जैसे समझने की है,इसलिए कि प्रत्येक व्यक्ति को इस समस्या का सामना करना पडता है। तुम्हैं भौतिकवाद और आध्यात्मवाद की शिक्षा दोनों एक साथ सिखाई गई है।
स- सच तो यह है कि समाज तुम्हैं परस्पर विरोधी चीजें सिखाये चला जा रहा है। हर एक पिता अपने बच्चे को उच्च शिक्षा प्राप्त कर ऊंचे पद पर पहुंचने की कामना करता है,धन सम्पत्ति कमाये, फिर उसका अपना बंगला हो कार हो,सुन्दर पत्नी हो। और समाज में भी प्रतिष्ठा हो । लेकिन दूसरी ओर अपने पुत्र को विनम्र होना भी देखना चाहता हैं,वह महत्वाकॉक्षी बने। लेकिन महत्वाकॉक्षी व्यक्ति विनम्र नहीं बन सकता है। पिता चाहता है कि अपना बेटा ईमानदार, सच्चा और प्रार्थनापूर्ण हो। लेकिन आज की परिस्थिति में उसे इस तरह की सफलता पाने के लिए बेइमान बनना होगा। और बेइमान होते हुये भी कोई भी उसकी बेइमानी न पकड सकें। उसे चालाक बेइमान बनना पडेगा। उसे अहंकारी होते हुये भी विनम्र होने का ढोंग करना होगा । यहॉ पर दोनों एक दूसरे के विरोधी होने पर भी इन्हैं एक ही व्यक्ति के अन्दर समाविष्ट करना चाहते हैं, इसलिए ऐसा व्यक्ति हमेशा विभाजित और खण्डित रहेगा।
द- तुम्हारा जन्म ही दुविधाग्रस्त संसार में हुआ है।तुम्हारे माता-पिता दुविधाग्रस्त थे,तुम्हारे शिक्षक,तुम्हारे पुरोहित दुविधाग्रस्त ही रहे हैं।वे तुम्हैं दो तटों के बीच की बातें सिखाते गये,वे ही तो तुम्हैं खण्डित बनाते जा रहे हैं।
6-प्रसन्नचित्त स्वस्थ लोगों का जीवन-
अ- प्रशन्नचित्त लोग जिन्हैं बाउल कहते हैं द्विधाग्रस्त और खण्डित नहीं होते हैं। उनका तर्क तो समझने लायक है। वे कहते हैं कि खाओ-पीयो और मौज मनाओ, और साथ ही साथ प्रार्थनापूर्ण भी रहो,इन दोनों में कोई विरोध भी नहीं है । उनका कहना है कि-यह तट और दूसरा तट दोनों परमात्मा रूपी नदी के दो किनारे हैं। प्रत्येक क्षण को भौतिकवादी बनकर जीना है और आध्यात्म की ओर भी उन्मुख रहना है। एक व्यक्ति को प्रशन्न और उत्सवपूर्ण होना है,और इसी के साथ –साथ भविष्य में विकसित और विस्तीर्ण होने के लिए सजग और पूर्णतः सचेत भी बने रहना है। तुम इस क्षण आनन्दित हो,तो अगले क्षण तुम्हारा ह्दय कमल से अधिक खिलेगा। तुम इस समय प्रशन्न हो तो अगले क्षण और अधिक आनन्दित होने में समर्थ हो सकोगे। यदि आज स्वर्ग है तो आने वाला कल नर्क नहीं बन सकेगा, इसलिए कि उसका जन्म आज के गर्भ से हुआ है।यदि आज का दिन गीत,नृत्य और हास्य से परिपूर्ण बीता है तो कल कैसे उदास हो सकता है? उदासी कहॉ से प्रविष्ठ होगी? वही तो तुम्हारा आने वाला कल बनने जा रहा है।और जब वह आयेगा,तो आज जैसा ही आयेगा,इसलिए कि तुमने आज किस तरह जिया जाये,यह राज जान लिया है।
ब- अगर जीवन जीने का ढंग सीखना है तो किसी सॉसारिक व्यक्ति से सीखना चाहिए।इस क्षण को कैसे जिया जाये,असली और प्रामाणिक धार्मिक लोगों से दिशा निर्देश लेना सीख,बुद्ध,महॉवार और कृष्ण का संश्लेषण करो। पदार्थ और मन को विभाजित और खण्डित न करो, न आकाश और पृथ्वी को अलग-अलग जानो। जड और फूलों में विभाजन मत करो वे दोनों एक साथ ही तो हैं।
स- दो विरोधियों को एक साथ लेकर चलना ही लक्ष्य है। जब अन्दर सारे विसर्जित हो जाते हैं,तब कोई संघर्ष नहीं रह जाता,तब अंदर तुममें एकत्व और अखण्डता घटती है,तुम दीप्तिवान हो उठते हो,तुममें एक महान गरिमॉ का जन्म होता है।तुम उतना ही प्रशन्न होंगे जितना इपीक्यूरस था। तुम बुद्ध के समान मौन हो जाओगे।
द- एक प्रशन्नचित्त रहने वाला बाउल तो बुद्ध और इपीक्यूरस दोनों का एक साथ आलिंगन करते हैं । यदि बुद्ध के समान पत्थर प्रतिमॉ की भॉति बनकर रह जाते हो तो तुम जीवंत नहीं रह सकोगे,और यदि तुम इपीक्यूरस बन जाते हो तो तुम बहुत कुछ चूक जाओगे। तुम क्षणिक जीवन के कुछ क्षणों का ही आनन्द ले सकते हो,लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। जीवन के पास तुम्हैं देने के लिए और भी बहुत कुछ है,सतह की लहरों पर ही जीवन विता रहे हो,तुम कभी भी गहराई तक नहीं पहूंचे।
य- समर्थवान बनो,लहरों पर रहते हुये,चमकती धूप के साथ बहती हुई हवाओं और गर्जते हुये तूफान का सामना करते हुये ,सागर की गहराई में उतरो,जहॉ कि सभी तूफान मिट जाते हैं,जहॉ केवल ऐसा गहरा अंधकार होता है जिसमें सूरज की एक किरण भी नहीं पहुंच पाती है,और जहॉ हर चीज बिना किसी शोर या व्यवधान के शॉत और मौन होती है। इसके लिए तुम्हैं समर्थवान बनना होगा।
7-अस्तित्ववादियों और बाउल(प्रशन्नचित् जीवन) वादियों में मतभेद
अ- अस्तित्ववादी मानते हैं कि आत्मां से पहले शरीर अस्तित्व में आया । मनुष्य पहले जन्मॉ फिर उसने स्वयं अपनी आत्मॉ का सृजन किया । मनुष्य तो खाली बोतल की तरह रिक्त में जन्मॉ था,उसके अन्दर कुछ भी न था। वह तो एक कोरे कागज की तरह था,फिर धीरे-धीरे उसने अपनी आत्मकथा लिखनी शुरू की। वह कुछ भी साथ लेकर नहीं आया,हर रोज उसे अपने हस्ताक्षर स्वयं करने होते हैं। लेकिन बाउल इसके ठीक विरोध में बात करते हैं। वे कहते हैं कि मनुष्य का जन्म आत्मां के साथ हुआ,आत्मॉ अर्थात मनुष्य,सारभूत मनुष्य अथवा आत्मॉ सदा से ही हैं। जैसा कि बीज में वृक्ष छिपा होता है उसी प्रकार शरीर में आत्मॉ होती है। जीवन किसी चीज का सृजन नहीं है,वह केवल एक फैलाव है।तुम्हारे पास वह पहले से ही है,केवल उसे विकसित होना है बीच में आने वाली बाधाएं या अवरोध हटाएं तो जीवन विकसित होना शुरू हो जाता है। तुम तो एक कली की भॉति हो, जब उसके खिलने में कोई बाधा नहीं होती है तो कमल के समान खिलना शुरू हो जाते हो।
ब- हम जो स्वयं को बनाने की बात कर रहे हैं,वह तो पहले से ही सारतत्व में हममें विद्यमान है,अगर पहले से ही न होता तो हम बन ही सकते । गुलाब की झाडी में गुलाब तो खिलेंगे ही। कमल की बेल कमल को ही उगायेगी,केवल रास्ते की रुकावटें हटा देनी है।और इसी को तैयारी करना कहा गया है। अपने आप को तैयार करने का अर्थ है अपने रास्ते की रुकावटों को दूर करना है।
स- यदि तुम घृणॉ़ को मिटा दो, तो प्रेम का झरना शुरू हो जायेगा। तुम्हैं प्रेम करने की जरूरत नहीं है, कोई भी व्यक्ति प्रेम को उत्पन्न नहीं कर सकता है,केवल घृणॉ को हटा दो तो तुम देखोगे कि प्रेम प्रवाहित होना शुरू हो जायेगा। मूर्छा दूर कर लो तो समझ का उदय होना शुरू हो जायेगा। तैयारी नकारात्मक चीजों को हटाने की है। जैसे नदी की धारा को छोटी सी चट्टान रोक रही हो और तुम उस चट्टान को हटा देते हो तो नदी प्रवाहित होने लगती है।चट्टान ही तो उसके मार्ग का अवरोध बन रही थी,और धारा के लिए यह कभी सम्भव न था कि वह आगे बढ सके। इसी तरह हमारे अस्तित्व के साथ बहुत सी चट्टानें लिए चल रही हैं,जो कि हमारी बहती ऊर्जा का अवरोध है,हमें इन अवरोधों को हटाना और विसर्जित करना होगा।
द- एक प्रशन्नचित्त रहने वाला बाउल तो बुद्ध और इपीक्यूरस दोनों का एक साथ आलिंगन करते हैं । यदि बुद्ध के समान पत्थर प्रतिमॉ की भॉति बनकर रह जाते हो तो तुम जीवंत नहीं रह सकोगे,और यदि तुम इपीक्यूरस बन जाते हो तो तुम बहुत कुछ चूक जाओगे। तुम क्षणिक जीवन के कुछ क्षणों का ही आनन्द ले सकते हो,लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। जीवन के पास तुम्हैं देने के लिए और भी बहुत कुछ है,सतह की लहरों पर ही जीवन विता रहे हो,तुम कभी भी गहराई तक नहीं पहूंचे।
य- समर्थवान बनो,लहरों पर रहते हुये,चमकती धूप के साथ बहती हुई हवाओं और गर्जते हुये तूफान का सामना करते हुये ,सागर की गहराई में उतरो,जहॉ कि सभी तूफान मिट जाते हैं,जहॉ केवल ऐसा गहरा अंधकार होता है जिसमें सूरज की एक किरण भी नहीं पहुंच पाती है,और जहॉ हर चीज बिना किसी शोर या व्यवधान के शॉत और मौन होती है। इसके लिए तुम्हैं समर्थवान बनना होगा।
7-अस्तित्ववादियों और बाउल(प्रशन्नचित् जीवन) वादियों में मतभेद
अ- अस्तित्ववादी मानते हैं कि आत्मां से पहले शरीर अस्तित्व में आया । मनुष्य पहले जन्मॉ फिर उसने स्वयं अपनी आत्मॉ का सृजन किया । मनुष्य तो खाली बोतल की तरह रिक्त में जन्मॉ था,उसके अन्दर कुछ भी न था। वह तो एक कोरे कागज की तरह था,फिर धीरे-धीरे उसने अपनी आत्मकथा लिखनी शुरू की। वह कुछ भी साथ लेकर नहीं आया,हर रोज उसे अपने हस्ताक्षर स्वयं करने होते हैं। लेकिन बाउल इसके ठीक विरोध में बात करते हैं। वे कहते हैं कि मनुष्य का जन्म आत्मां के साथ हुआ,आत्मॉ अर्थात मनुष्य,सारभूत मनुष्य अथवा आत्मॉ सदा से ही हैं। जैसा कि बीज में वृक्ष छिपा होता है उसी प्रकार शरीर में आत्मॉ होती है। जीवन किसी चीज का सृजन नहीं है,वह केवल एक फैलाव है।तुम्हारे पास वह पहले से ही है,केवल उसे विकसित होना है बीच में आने वाली बाधाएं या अवरोध हटाएं तो जीवन विकसित होना शुरू हो जाता है। तुम तो एक कली की भॉति हो, जब उसके खिलने में कोई बाधा नहीं होती है तो कमल के समान खिलना शुरू हो जाते हो।
ब- हम जो स्वयं को बनाने की बात कर रहे हैं,वह तो पहले से ही सारतत्व में हममें विद्यमान है,अगर पहले से ही न होता तो हम बन ही सकते । गुलाब की झाडी में गुलाब तो खिलेंगे ही। कमल की बेल कमल को ही उगायेगी,केवल रास्ते की रुकावटें हटा देनी है।और इसी को तैयारी करना कहा गया है। अपने आप को तैयार करने का अर्थ है अपने रास्ते की रुकावटों को दूर करना है।
स- यदि तुम घृणॉ़ को मिटा दो, तो प्रेम का झरना शुरू हो जायेगा। तुम्हैं प्रेम करने की जरूरत नहीं है, कोई भी व्यक्ति प्रेम को उत्पन्न नहीं कर सकता है,केवल घृणॉ को हटा दो तो तुम देखोगे कि प्रेम प्रवाहित होना शुरू हो जायेगा। मूर्छा दूर कर लो तो समझ का उदय होना शुरू हो जायेगा। तैयारी नकारात्मक चीजों को हटाने की है। जैसे नदी की धारा को छोटी सी चट्टान रोक रही हो और तुम उस चट्टान को हटा देते हो तो नदी प्रवाहित होने लगती है।चट्टान ही तो उसके मार्ग का अवरोध बन रही थी,और धारा के लिए यह कभी सम्भव न था कि वह आगे बढ सके। इसी तरह हमारे अस्तित्व के साथ बहुत सी चट्टानें लिए चल रही हैं,जो कि हमारी बहती ऊर्जा का अवरोध है,हमें इन अवरोधों को हटाना और विसर्जित करना होगा।
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