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Showing posts from February, 2013

भौतिकवाद और आध्यात्मवाद का आमेलन

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1-खाओ-पीयो और मौज करो-           जी हॉ जीवन के दो किनारे माने गये हैं एक किनारा इधर का और दूसरा उधर का। इधर का किनारा भौतिकवाद और उधर का किनारा आध्यात्मवाद का। कुछ लोगों की विचारधारा होती है कि दो दिन की जिन्दगी होती है, क्यों न मौज-मस्ती से रहें। ऐसे लोगों का यह दृष्टिकोंण भौतिकवादी है। इस विचारधारा से वे लोग कुछ जुटा नहीं पाते हैं,इसलिए कि उनका तर्क होता है कि हर एक को मृत्यु पूरी तरह से सब कुछ नष्ट कर देगी,कुछ भी नहीं बचेगा,इसलिए दूसरे किनारे की फिक्र ही न करो! इस बारे में सोचो ही नहीं और न विचार करो। परमात्मा,सत्य,मुक्ति,मोक्ष या निर्वांण को प्राप्त करने के बारे में ये सभी भ्रम मात्र है,इनका कोई कहीं अस्तित्व ही नहीं है। इसलिए उस क्षण से जितना भी रस निचोड सकते हो,निचोड लो। जीवन एक संयोग से मिला है। कई लोग इसी धारणॉ से जीते हैं । लेकिन ऐसे लोग बहुत कुछ स्थितियों में चूक जाते हैं –क्योंकि यह जीवन मात्र एक संयोग नहीं है,बल्कि इस जीवन का कुछ कारण और उद्देश्य भी है,जीवन तो एक फैलाव या विस्तार है। भविष्य बंजर नहीं है,बल्कि उसमें कु...

मनुष्य की समझ और सम्भावनाएं

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1-अर्थ हमेशा उच्चतम स्थिति में पहुंचने का नाम है -   अ-          अर्थ हमेशा किसी उच्चत्तम स्रोत से ही आता है,किसी वस्तु या व्यक्ति में स्वयं कभी कोई अर्थ नहीं होता है,वह तो हमेशा कहीं पार अज्ञात से आता है। जैसे एक बीज को ही देखें,जोकि अपने आप में अर्थहीन है,लेकिन अंकुरित होने पर वह अर्थपूर्ण हो जाता है। बीज के लिए तो वृक्ष होना ही उसका अर्थ है। लेकिन वृक्ष का अपने आप में तबतक कोई अर्थ नहीं है जबतक उस वृक्ष में फूल नहीं आते । अब वह वृक्ष मॉ बन गया है,अब उस वृक्ष ने कुछ नयॉ जन्म दिया है।वह वृक्ष अब महत्वपूर्ण बन गया है। इसीलिए तो वह वृक्ष फूलों का इन्तजार कर रहा था । लेकिन फूलों का भी अपने आप में तबतक कोई महत्व नहीं है जब तक हवाओं द्वारा उसकी सुगन्ध को दूर-दूर तर न बिखेर दे। फूल तभी अर्थपूर्ण होगे।   ब-          अर्थ का मतलव हुआ उच्चत्तर स्थिति में पहुंचना।हमेशा अर्थ होता है उसके पार जाने में। लेकिन मनुष्य के पार तो कुछ भी नहीं है,वह हमेशा उसी रूप में रहता है,उसका आकार रूप...

स्वतंत्रता का अर्थ अधिक सजग होना है

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1-            स्वतंत्रता का मतलव यह नहीं कि अब तुम्हारा कोई दाइत्व नहीं है। नीत्से ने घोषणॉ की थी कि परमात्मा मर चुका है और अब मनुष्य स्वतंत्र है। और इसके बाद अगला वाक्य लिखा था कि -अब तुम सब कुछ कर सकते हो,जो तुम करना चाहते हो । यहॉ पर यह बचन तर्कसंगत प्रतीत नहीं होता है। इसलिए कि हम उसके द्वारा सृजित प्राणी हैं,वह तो सृष्ठिकर्ता है। उसने ही हमारे अन्दर पाप और भ्रष्टाचार के बीज रखे,इसलिए जिम्मेदार वही है,हम तो स्वतंत्र है। और यदि अगर ईश्वर नहीं है तो तब मनुष्य अपने कार्यों के लिए पूरी तरह से जिम्मेदार है। दूसरे पर जिम्मेदारी थोपने का कोई उपाय है ही नहीं।       2-            और यदि मैं तुमसे कहता हूं कि तुम स्वतंत्र हो,तो इसका मतलव यह हुआ कि तुम ही उत्तरदाई हो। तुम किसी दूसरे पर जिम्मेदारी नहीं डाल सकते हो,तुम ही अकेले जिम्मेदार हो। तुम जो कुछ भी करते हो,वह तुम्हारा ही कृत्य है। तुम यह नहीं कह सकते हो कि किसी अन्य व्यक्ति ने तुम्हैं वह सबकुछ करने...

मन की नकली यात्रा से मुक्ति का मार्ग

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1-            अगर देखें तो जब तक विचार चल रहे हैं ,यही मन की यात्रा है और जब विचार रुक जाते हैं,तो लगता है हमारा मन विचारों की भीड से मुक्त हो गया। हम देखते हैं कि हमारे चारों ओर अब विचारों का कोई भी धुवॉ नहीं रह गया है। अगर हमारी दृष्टि सरल,निर्दोष और विचारों के प्रदूषण से मुक्त हो जाती है,तो यह मन की यात्रा नहीं है,बल्कि इसके अतरिक्त प्रत्येक वस्तु मन की यात्रा है। प्रेम भी मन की यात्रा में सम्मिलित नहीं है। क्योंकि गहरे प्रेम के क्षणों में विचार रुक जाते हैं। सोचने की प्रक्रिया रुक जाती है। या गहरे ध्यान में भी जब मौन के क्षण आते हैं,तो हम पूरी तरह से स्थिर हो जाते हैं,हम शॉत हो जाते हैं,फिर चेतना की ज्यौति स्थिर हो जाती है,विचार प्रक्रिया रुक जाती है। फिर हम मन की पकड से बाहर हो जाते हैं। अन्यथा हर चीज मन की यात्रा होगी।       2-           इस बात को हमें ध्यान में रखना होगा कि हर एक व्यक्ति को मन के पार जाना है,क्योंकि मन ही संसार है। जब हम सोचते ...

ज्ञान के चक्षु का प्रभाव

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1-            यह देखा गया है कि कुछ लोगों को बुद्धत्व प्राप्त होने लगता है तो उनकी जिन्दगी का स्वरूप ही बदल जाता है। इस सम्बन्ध में कई प्रकार के उदाहरण हैं। जब कृष्ण को बुद्धत्व प्राप्त हुआ तो उन्होंने नाचना और गाना शुरू कर दिया,लेकिन महॉवीर ने ऐसा नहीं किया वे तो वर्षों तक मौन रहे। लेकिन मीरा ने ऐसा नहीं किया,जब उन्हैं बुद्धत्व उपलव्ध हुआ तो वे गॉव-गॉव जाकर नाचने लगी,उसने कृष्ण की महिमा के गाये। उसी प्रकार जब बाशो को बुद्धत्व उपलव्ध हुआ तो उसने कविता गाना शुरू किया । और ऐसे भी लोग हैं कि जिन्होंने बुद्धत्व प्राप्त होने पर इस संसार को ही छोड दिया। कुछ लोग हिमालय में चले गये । और कुछ लोग हैं जिन्हैं बुद्धत्व प्रप्त होने पर वे हिमालय से पुनः संसार में आ गये।     2-             महॉन गुरु झेन-सद्गुरु के बारे में कहा जाता है कि वे बहुत साधारण जीवन विताते थे। वे स्वयं खाना बनाते थे लकडियॉ काटते थे। उनको समझने के लिए उन्हैं समझने की दृष्टि होनी चाहिए । वे ...

जीवन की दिशा

1-ध्यान में अपने अन्दर उतरना सीखें-             हमारा मन भी अजीवोगरीव ढंग से कार्य करता है,यदि आप ध्यान करते हैं तो आप दूसरों के प्रति यह नहीं देखेगे कि दूसरों में ध्यान कैसा घटित हो रहा है। यदि आपका ध्यान सच्चा है तो आप अपने ही अन्दर उतरेंगे।            एक शिष्य अपने गुरु के साथ बारह वर्षों तक रहा,और हर दिन अपने गुरु के पास आता था,आते समय उसे एक बडे हाल से होकर आना होता था। एक दिन गुर ने शिष्य से कहा तुम जिस बडे कक्ष से होकर आते हो उसमें अलमारी के ऊपर एक किताब है असे उठा लाओ। शिष्य ने कहा ठीक है मैं चला तो जाऊंगा लेकिन वहॉ मैंने कभी कोई अलमारी नहीं देखी। गुरु ने कहा तुम मुझसे मिलने हमेशा आते हो और वह भी बारह वर्षों से, और हमेशा उसी हॉल से आते हो,क्या तुमने वहॉ कोई अलमारी नहीं देखी? शिष्य ने उत्तर दिया कि मुझे आपके निकट आना होता था । मैं यहॉ यह देखने नहीं आया हूं कि उस बडे कक्ष में क्या है,वहॉ कोई बडी अलमारी भी है कि नहीं,उसमें कोई किताब भी है कि नहीं।मेरा मकसद तो स...

परमात्मा के दर्शन

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1-परमात्मा की खोज का सवाल-               अगर हम परमात्मा की खोज की बात करते हैं तो,यह हमारा केवल एक भ्रम होगा, क्योंकि इस सम्बन्ध में अब खोजने के लिए विशेष कुछ भी नहीं है। इस सम्बन्ध में यही सत्य है कि परमात्मा है और उसका पूर्ण स्तित्व है।जो सब कुछ है वही परमात्मा है। परमात्मा तो एक विश्व महान व्यापकता है। और परम नियम है। हम परमात्मा को किसी स्थान विशेष में नहीं खोज सकते हैं। क्योंकि वह स्वयं में पूर्ण और अखंण्ड है ।अगर आप किसी स्थान में परमात्मा का इशारा करते हैं तो यह गलत होगा। क्योंकि वह तो हर कण में है हर दिशा में है,जहॉ जाओ मिल सकेगा। लेकिन होता क्या है कि यह मन मानता नहीं है,यही तो इस मन की समस्या है, कि वह एक विशिष्ठ चीज की खोज करना चाहता है। मन कल भी खोज रहा था आज भी खोज रहा है,और कल भी खोजेगा,अपने पूर्व जन्मों में भी खोज रहा था,इस जीवन में क्या भविष्य के जन्मों में भी उसे खोजेगा। खोजने की एक आदत जैसी बन गई है। हमारे अन्दर खोजने का एक ढॉचा बन गया है उसे गिराना होगा । यह मन बहुत संकीर्ण ह...