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जीवन की अमरता का रहस्य

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               जीवन में अमर होने की बात एक रहस्य बना हुआ है, मनुष्य ने इतनी खोजें कर ली हैं,मगर अमर होने की खोज का रहस्य अधूरे सपनों की फायलों में बन्द है। हर कोई अमर होने की बात करता है। यह साधु महात्माओं और ज्ञानियों सभी का गहन चिंतन का विषय रहा है,कवियों की कल्पना का यह मुख्य विषय रहा है। राजा महॉराजाओं ने भी अमर होने की कल्पना की है। सभी लोग चाहे वह भिखारी हो या राजनेता अमर होने की चाह रखते हैं। और जबतक जीवित है, यह संसार है, तबतक यह चाह रखेंगे कि अमर कैसे होते हैं । विभिन्न लोगों ने इस सम्बन्ध में अपने-अपने तर्क दिये हैं ।कुछ लोगों ने इसे अनावश्यक बात कहकर इस पर कुछ कहना छोड दिया है,लेकिन जो भी बात करता है उसके लिए यह बात नईं है । एक कदम भी इस खोज में कोई आगे नहीं बढ पाया है। लेकिन प्रश्न यह उठता है कि जो लोग ऐसी बातें करते हैं कहीं वे भ्रमित तो नहीं है?अज्ञानतावश तो नहीं सोचते हैं ऐसा? इस सम्बन्ध में हम विभिन्न पहलुओं की ओर देखने का प्रयास करते हैं---       1-     ...

आत्म चिंतन

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                 आत्मा की आवाज पहचानने से नये-नये रहस्यों की एक श्रृंखला कुछ प्रश्नों,कुछ उत्तरों और कुछ अनसुलझे रहस्य सामने आते हैं, भले ही यह भी सोचते हैं कि इन तर्कों से क्या हो जायेगा,लेकिन यह मानव प्रवृत्ति का एक अंग है,आत्म चिंतन के रहस्यों के बारे में अगर विचार करें तो,पर्दे खुलते जाते हैं लेकिन अंत उसी बिन्दु पर होता है जहॉ से चले थे -   1-           इस मनुष्य की रचना करने वाले ने मनुष्य की इन्द्रियों को बहिर्मुखी होने का विधान बनाया है,इसीलिए मनुष्य बाहरी विषयों की ओर देखता है,अन्तरात्मा की ओर नहीं देखता है। लेकिन अगर देखें तो इस पृथ्वी पर जिसने भी अमरत्व की प्राप्ति की है उन्होंने बाहरी विषयों से विमुख होकर अपने अन्तरस्थ आत्मा का दर्शन किया है। हमारे वेदों द्वारा पृथ्वी पर हपली बार बाहरी विषयों के सम्बन्ध में खोज प्रस्तुत की है,जिसके आधार पर नवीन विचारों का जन्म हुआ है। उसके बाद कई प्रकार के विचार सामने आये हैं। सच तो यह है कि ...

आस्था की नीव

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http://raghubirnegi.wordpress.com/ http://bookdotwordpressdotcom.wordpress.com/                            आत्मा के सम्बन्ध में भारतीय चिंतन में अनेक मत हैं,अलग-अलग धमों में आत्मा को समझाने का प्रयास किया गया है। भारत में प्रचलित मतों को दो भागों में विभाजित किया जा सकता है। 1-आस्तिक और 2-नास्तिक ,जो मत हिन्दू धर्मग्रन्थों वेदों को सत्य का प्रकाश मानते हैं,उन्हैं आस्तिक और जो वेदों को न मानकर अन्य प्रमॉणों पर आधारित हैं,उन्हैं नास्तिक कहते हैं। इन्हीं विचारों की ब्याख्या करने का प्रयास करते हैं---   ईश्वर का आस्तिक स्वरूप     1-            इस विचार धारा की मान्यता है कि ईश्वर सगुण है,उसका शऱीर नहीं है पर उसमें गुंण है।मानवीय गुंण उसमें विद्यमान है,जैसे-दयावान,न्यायप्रिय,सर्वशक्तिमान व बलवान उसके पास पहुंचा जा सकता है,उससे प्रार्थना की जा सकती है,उससे प्रेम किया जा सकता है आ...

पुनर्जन्म के तथ्य

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                                         http://raghubir-negi.blogspot.in/ http://bookdotwordpressdotcom.wordpress.com/   http://raghubirnegi.wordpress.com/                   पुनर्जन्म के सम्बन्ध में मनीषियों द्वारा शंकाओं का समाधान करने के अनेक प्रयास किये गये मगर फिर भी हमेशा अलग-अलग मत सामने आते रहे हैं। कुछ तथ्यों की विवेचना प्रस्तुत हैं-     1-                होता क्या है कि हर आदमी की समझने की क्षमता अलग-अलग होती है। किसी बात को कोई जल्दी समझ लेता है और कोई देर में,और कोई समझ ही नहीं पाता है। और कुछ को ऐसा लगता है कि मुझे यह मालूम था। इसका कारण क्या है? इस सम्बन्ध में हमने पहले भी विवेचना की थी कि पूर्...

अपने मन से स्वयं को वश में करें

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  http://raghubir-negi.blogspot.in/ / http://raghubirnegi.wordpress.com/                          अगर आपका मन आपके वश में नहीं है तो दूसरे की इच्छा से प्रेरित होकर अपने मन को संयमित करने की चेष्ठा न करें,इससे उद्देश्य की पूर्ति नहीं होगी । क्योंकि प्रत्येक जीवात्मा का लक्ष्य मुक्ति या स्वाधीनता,या दासत्व से मुक्त करके स्वयं पर  प्रभुत्व स्थापित करना होता है, ताकि अपनी वाह्य तथा आन्तरिक प्रकृति पर अधिकार जमा सके । अगर दूसरे व्यक्ति द्वारा प्रयुक्त इच्छाशक्ति का प्रवाह हम स्वयं पर लागू करने का प्रयास करते हैं तो हमारे अन्दर पुराने संस्कारों और धारणॉओं में भ्रॉति की बेडी की एक और कडी जुड जाती है ।             इसलिए सावधान रहें ।अपने ऊपर ऐसी इच्छाशक्ति का संचालन न करने देना होगा ।अथवा दूसरे पर इस प्रकार की इच्छाशक्ति का प्रयोग अनजाने में न करें । यह बात सही है कि कुछ लोग कुछ व्यक्तियों की प्रवृत्त...

सत्य की खोज

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http://raghubirnegi.wordpress.com/   http://raghubir-negi.blogspot.in   1 -         चरित्र हमारा आचरण है                    हमारा चरित्र हमारे आचरण का दर्पण है।इसलिए चरित्र आचरण का ही नाम है ,क्योंकि हम जैसे हैं वैसे ही आचरण करते हैं, यही हमारा चरित्र है ।यदि हम अच्छे नहीं हैं तो हम अच्छा आचरण नहीं कर सकते हैं।चरित्रवान की पहचान है कि क्रोध,हर्ष,लोभ,अहंकार,तथा शत्रुता का अभाव,सत्य बोलना,आहार का संयम,दूसरों के दोषों को प्रकट न करना,ईर्ष्या न करना,अच्छी बातों के लिए दूसरों के साथ सहभागिता करना,शॉति,आत्म संयम,सभी जीवों के प्रति मैत्री,क्रूरता का अभाव,सरलता,सौम्यता,और सन्तोष।ये बातें मानव जीवन की सभी अवस्थाऔं के लिए हर क्षण उपयोगी हैं ।        2-              द्वैष-भाव से बचें             कभी-कभी न ...

सुस्वागतम्

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