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प्रेम और सम्बन्ध Confluence of peace of mind मन की शांति का संगम https://t.me/man_kishanti

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             जीवन की महानता उपलब्धियों मे नहीं बल्कि सम्बन्धों मे है । परंतु आज का संसार सम्बन्धो की प्रवाह नहीं करता । वह करोड़पति बनना चाहता है ।वह किसी भी सम्बन्ध को धोखा दे सकता है ।यही कारण है कि आज चारो तरफ़ अशांति छाई हुई है । घर घर मे कलह है । आप के साथी/साथियों मे जो प्रितिभा छिपी है उसे बाहर निकालने के लिये प्रेरित करो ।               अगर आप में प्रितिभा है और उन मे नहीं तो गाड़ी एक पहिये से नहीं चलेगी । उन्हे भी अपने जैसा महान बनाओ । यह ना सोचो की वह हमे छोड़ जायेगे । मिस्त्री लोगो वाली मानसिकता त्याग दो । मिस्त्री लोग अपने कर्मचारियों को अपना हुन्नर नहीं सिखाते । इसलिये वे सारी उम्र मिस्त्री ही रहते है । मुखिया किसी को आगे नहीं आने देते है । वह बूढे और लाचार हो जाते है तब भी वह किसी दूसरे को चान्स नहीं देते । ये प्रेम नहीं है । ऐसी संस्थायें खूब बढ़ती है परंतु उनके देहांत के बाद टूट जाती है क्यों कि उनके सदस्य दूसरे लोगो की कमांड स्वीकार नहीं करते तथा ना ही उन्हे कोई संस्था चलाने का अनुभव होता है ...

प्रेम, दयालुता एवं शांति

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प्रेम दयालु होता है।                जब हम प्रेम प्रकट करना चाहते है तो हमे दयालुता पूर्ण शव्दो का प्रयोग करना चाहिये । एक वाक्य के अलग अलग मतलब होते है । यह अर्थ हमे किसी घटना के बारे मे कहने के अंदाज़ से लगता है । शब्द कर्कश है या नम्र ।                 कई बार हमारे शब्द कुछ कहते है और उन्हे कहने का अंदाज़ कुछ और ही होता है । हम दो तरफा संदेश भेज रहे होते है, दूसरा व्यक्ति हमारे शव्दो के आधार पर नहीं, हमारे कहने के अंदाज़ से हमारे संदेश का अर्थ लगाता है । दयालुता पूर्ण स्वर से हम किसी के दुख, चोट और गुस्से को बाँट सकते है । यही प्रेम की निशानी है । नहीं तो आमतौर पर समझा जाता है कि मुसीबत में सब साथ छोड़ जाते है ।                  अगर कोई परेशानी मे है तो उस समय दयालु शबदो से जबाब दो । वह जल्दी ही उस से बाहर आ जायेगा । नहीं तो वह डिप्रेशन में जा सकता है । वह मानसिक रोगी भी बन सकता है । एक शांत उतर क्रोध को दूर भगाता है । जीवन साथी गुस्से में है, परे...

दर्द

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                   कई लोग अपनी नसें काट लेते है , अपने को आग लगा लेते है, ऊँचाई से कूद कर अपनी हड्डियाँ तोड़ लेते है । मजे की बात यह है कि इन्हे पीड़ा का अहसास नही होता ।                    ये . दर्द वास्तव में मानसिक रोग है जिसके कारण ऐसे कर्म कर लेते है । पीडा किसी को भी पसंद नही है परंतु वह हमारे जीवन का अभिन्न अंग है । नदिया बहती है, सुबह शाम होते है, मौसम बदलते है, धूप छाँव होती है । इसी प्रकार जीवन में सुख और दुख का आना जाना लगा रहता है ।। दुखों का प्रवेश दुखद घटना है, परंतु बिना दुखों के हम जीवन जीने की कला नही सीख सकते, परेशानी हमे बलवान बनाती है । हमे बहादुर बनाती है । हमे बुद्विवान बनाती है हमे जीना सिखाती है ।                युद्ध की जीत किसी मदान में नही बल्कि मस्तिष्क में होती है । कुशलता पीड़ा एवं कष्टों से आती है । मसीहा आये, देवियां आई और महान आत्माये आई और गई परंतु मनुष्यों के दुख नही गये । ये हमे ही भगाने होगे । परेशानियां आप...

आध्यात्म की परछाई

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1-धर्म की परछाई-             धर्म का अध्ययन करना एक गूढ विषय है,हमारे विद्वान लोग कई प्रकार के धर्मों का उल्लेख करते हैं,जिनमें पहला प्रकार अज्ञानता का है,जिसमें लोग अपनी अज्ञानता को वर्दास्त नहीं कर पाते हैं,इसलिए वे इसे छुपाते हैं।ऐसा आभास नहीं होता कि कोई व्यक्ति कुछ भी नहीं जानता है। इस विधि में प्रारम्भ में ऐसा लगता है जैसे कि इससे सुरक्षा हो रही है,लेकिन अंतिंम रूप में यह बहुत विध्वंसक है। इसका मूल श्रोत ही अज्ञान है।वैसे धर्म को एक रोशनी माना गया है,एक प्रकाश है,धर्म एक समझ है,धर्म अपने होश और हवास में रहना है। लेकिन देखा गया है कि अधिकॉश लोग पहले तरह के धर्म में ही रहते हैं,बस वे उस रिक्तता को झुठलाते रहते हैं,वे अपने अज्ञानता की अंधेरी काली खाई से बचने का प्रयास करते हैं।             ये लोग कट्टर और उन्मादी होते हैं,वे यह भी नहीं जानते हैं कि दुनियॉ में दूसरे तरह के धर्म भी हो सकते हैं।उनका धर्म ही एक मात्र धर्म है। क्योंकि वे अपने अज्ञान से इतने अधिक डरे हुये होत...

प्रार्थना ऐसी हो जिसकी अनुभूति की जा सके

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  1-प्रार्थना करने की कोई विधि नहीं है-             जी हॉ कुछ लोग प्रार्थना की विधियों का उल्लेख करते हैं, मगर प्रार्थना की कोई भी विधि नहीं हो सकती है। क्योंकि यह न कोई संस्कार है और न कोई औपचारिकता बस प्रार्थना ह्दय से निकलने वाला सहज स्वाभाविक उमडता हुआ एक भाव है। लेकिन इसमें पूछने वाली बात नहीं है कि कैसे?क्योंकि? यहॉ कैसे, जैसा कुछ भी नहीं है,कैसे जैसा कुछ भी हो सकता है। उस क्षण जो भी घटता है,वही ठीक है। अगर आंसू निकलते हैं तो अच्छा है,कोई गीत गाने लगता है तो भी ठीक है,अगर अन्दर से कुछ भी नहीं निकलता है तो शॉत खडे रहते हो,यह भी ठीक है।क्योंकि प्रार्थना कोई अभिव्यक्ति नहीं है,या किसी आवरण में भी वन्द नहीं है। प्रार्थना तो कभी मौन है,तो कभी गीत गाना प्रार्थना बन जाती है। यह तो सबकुछ तुम और तुम्हारे ह्दय पर निर्भर करता है।इसलिए अगर मैं तुमसे गीत गाने के लिए कहता हूं तो तुम गीत इसलिए गाते हो कि ऐसा करने के लिए मैंने तुमसे कहा, इसलिए यह प्रार्थना झूठी है।इसलिए प्रार्थना में अपने ह्दय की सुनो,और उस क्षण को महसूस करो औ...

विश्वास और संदेह का सम्बन्ध

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1-विश्वास करना एक निर्णय नहीं है   अ-         अगर हम किसी पर विश्वास करते हैं तो यह हमारा निर्णय नहीं है,इसलिए कि हम उसके लिए निर्णय नहीं ले सकते हैं। जब हम उसके प्रति संदेह करना बन्द कर देते हैं,जब हम संदेह को संदेह की दृष्टि से देखने लगते हैं, तो हम संदेह की व्यर्थता के प्रति पूर्णतः आश्वस्थ हो जाते हैं,फिर विश्वास का जन्म हो होता है। विश्वास के लिए तो कुछ करने की जरूरत नहीं है,वरना विश्वास का महत्व कम हो जायेगा,क्योंकि विश्वास और हमारा निर्णय हमेशा संदेह के विरुद्ध ही होगा। जबकि विश्वास संदेह के विपरीत नहीं होता है। जब संदेह नहीं होता है तो उस समय विश्वास होता है। इसी प्रकार विश्वास किसी के प्रतिकूल नहीं होता है। ठीक उसी प्रकार जैसे कि अंधकार प्रकाश के विपरीत नहीं होता है। भले ही यह विपरीत प्रतीत होता है,इसलिए कि हम अंधकार को लाकर प्रकाश को नष्ट नहीं कर सकते हैं। हम अंधकार को अंदर नहीं ला सकते हैं,हम अंधकार को प्रकाश के ऊपर उडेल नहीं सकते हैं। अंधकार इसलिए हैं,क्योंकि प्रकाश नहीं है।जब प्रकाश होता है तो अंधकार नहीं होता है। औ...

परमात्मा तर्क का विषय नहीं है

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1-परमात्मॉ के तर्क से नकली विचार उत्पन्न होते हैं-     अगर परमात्मॉ के सम्बन्ध में हम तर्क करते हैं तो इससे नकली विचार उत्पन्न हो सकते हैं।हम यही सोच सकते हैं कि इस विराट संसार को एक साथ चलाने वाली एक शक्ति अवश्य है,लेकिन मैं यह नहीं जानता कि कौन इसे चला रहा है,कौन इसे सम्भाले हुये हैं,इस सम्बन्ध में हमें कुछ भी पता नहीं है,यह अज्ञान ही उपयुक्त होगा,जो कि ईमानदार प्रामाणिक और सच्चा है।इससे आगे सोचना नकली विचार उत्पन्न होगा।क्योंकि सचमुच हम कुछ भी नहीं जानते हैं।           अगर हम परमात्मां के सम्बन्ध में तर्क भी करते हैं तो हम सोचते हैं कि यह संसार सभी को एक साथ लेकर ऐसे ही कैसे चले जा रहा है? इसके लिए परमात्मॉ अवश्य होगा।और कुछ दार्शनिक ऐसे भी हैं जो कहते हैं यह संसार ऐसे ही यॉत्रिक रूप में चले जा रहा है,पृथ्वी,सूर्य,तारे चन्द्रमॉ सब एक साथ परिभ्रमण किए चले जा रहे हैं,इसमें परमात्मॉ नहीं हो सकता है।क्योंकि रोज सूर्य उगता और असत होता है यह पृथ्वी घूम रही है,लोग जन्म लेते हैं फल और बीज वृक्षों पर लगते हैं और बीज मौसम आने पर...