परमात्मा तर्क का विषय नहीं है
1-परमात्मॉ के तर्क से नकली विचार उत्पन्न होते हैं-
अगर परमात्मॉ के सम्बन्ध में हम तर्क करते हैं तो इससे नकली विचार उत्पन्न हो सकते हैं।हम यही सोच सकते हैं कि इस विराट संसार को एक साथ चलाने वाली एक शक्ति अवश्य है,लेकिन मैं यह नहीं जानता कि कौन इसे चला रहा है,कौन इसे सम्भाले हुये हैं,इस सम्बन्ध में हमें कुछ भी पता नहीं है,यह अज्ञान ही उपयुक्त होगा,जो कि ईमानदार प्रामाणिक और सच्चा है।इससे आगे सोचना नकली विचार उत्पन्न होगा।क्योंकि सचमुच हम कुछ भी नहीं जानते हैं।
अगर हम परमात्मां के सम्बन्ध में तर्क भी करते हैं तो हम सोचते हैं कि यह संसार सभी को एक साथ लेकर ऐसे ही कैसे चले जा रहा है? इसके लिए परमात्मॉ अवश्य होगा।और कुछ दार्शनिक ऐसे भी हैं जो कहते हैं यह संसार ऐसे ही यॉत्रिक रूप में चले जा रहा है,पृथ्वी,सूर्य,तारे चन्द्रमॉ सब एक साथ परिभ्रमण किए चले जा रहे हैं,इसमें परमात्मॉ नहीं हो सकता है।क्योंकि रोज सूर्य उगता और असत होता है यह पृथ्वी घूम रही है,लोग जन्म लेते हैं फल और बीज वृक्षों पर लगते हैं और बीज मौसम आने पर फिर वृक्ष बनते हैं। यह एक यॉत्रिक प्रतीत होता है। दार्शनिक यही कहते हैं कि यह संसार सही ढंग से चले जा रहा है,इसके पीछे कोई व्यक्ति हो ही नहीं सकता है।
इस सम्बन्ध में एक उदाहरण है कि महॉन पेण्टर पिकासो द्वारा बनाई पेण्टिंग उनके घर के बाहर दिखाने के लिए रखी जाती है, हर रोज नईं पेण्टिग रखी जाती है,और लोग उनके घर में कभी न तो गये और न ही किसी ने उन्हैं पेण्टिंग बनाते हुये देखा, लोग यही कहेंगे कि इस घर में इन्हैं बनाने की कोई यॉत्रिक व्यवस्था है,उन्हैं यह पता नहीं है कि अन्दर पिकासो महॉन पेण्टर बैठा है। यही बात इस संसार को चलाने की बात है,दार्शनिक इसे यॉत्रिक व्यवस्था से चलने की बात करते हैं। लेकिन अगर हम इस श्रृष्ठि को चलाने वाला कोई अवश्य होना चाहिए था की बात करते हैं तो इस तर्क में हम मुसीबत में पड जाएंगे।क्योंकि तर्क का परिणॉम नकली होगा।
2-परमात्मॉ तर्क का विषय नहीं है-
अगर हमने परमात्मॉ को तर्कशास्त्र का विषय बना दिया तो हम पागल हो जाएंगे,क्योंकि तर्क के द्वारा जॉच पडताल के जाल से कोई भी व्यक्ति कभी समझदार नहीं बन सकता,क्योंकि इसका तर्क से कोई लेना देना नहीं है। यह चीज ऐसी है जिसे ह्दय के साथ किये जाना है,यह प्रेम के साथ करने जैसी है।
अगर मैंने विश्वास कर दिया कि वहॉ परमात्मॉ है, तो विश्वास ही एक चट्टान बन जायेगा,और फिर तुम्हैं गहरे उतरने की अनुमति नहीं मिलेगी। बस यही जानना है कि तुम उसे नहीं जानते हो,अपने अज्ञान को स्वीकार करो। उसे विश्वास की आड में छिपाओ नहीं! अज्ञान से एक सम्भावना हो सकती है,लेकिन झूठी तार्किक जानकारी से कोई सम्भावना नहीं होती है। तार्किक जानकारी तो एक बंजर है,जबकि प्रेम भाव उपजाऊ है।
अगर मैं यह विश्वास करता हूं कि परमात्मा है,कोई शक्ति जरूर होनी चाहिए जो पूरे ब्रह्मॉड को एक साथ चला रही है,यह विचार परमात्मॉ तक पहुंचने का कोई तरीका नहीं है,इससे अपने गहराई में परमात्मॉ का अनुभव नहीं कर सकोगे। परमात्मॉ का अनुभव करोगे भी कैसे! क्योंकि ह्दय में हम तर्क के निष्कर्ष का अनुभव नहीं कर कर सकेंगे। दो और दो चार होते हैं,यह तो निश्चित रूप से ठीक है,लेकिन तर्कपूर्ण निष्कर्ष से क्या प्रेम कर सकते हो? क्या तुम दो धन दो चार से प्रेम कर सकते हो? और यदि कोई इन्कार करता है,जबकि यह सही है, तो क्या तुम उसके लिए क्या करोगे? इसके लिए तुम्हैं शहीद होना पडेगा। इसके लिए तुम कहोगे कि मैं अपना जीवन नष्ट क्यों करू? कोई भी तर्कपूर्ण निष्कर्ष के लिए अपने जीवन को दॉव पर नहीं लगाता,क्योंकि दो और दो मिलाकर चार होना पूरी तरह सच है, लेकिन यह सत्य परमात्मॉ की श्रेणी का नहीं है।और न यह लैला मजनू की श्रेणी का सच है। यदि तुम्हारे तर्क को गलत सिद्ध कर दिया जाय तो कुछ भी गलत सिद्ध नहीं किया जा सकता है,तुम अपने तर्क में परिवर्तन कर सकते हो। लेकिन यदि तुम्हारा प्रेम गलत सिद्ध हो जाता है ते तुम फिर वही व्यक्ति कभी नहीं हो सकते।तुम्हारा प्रेम गलत सिद्ध होने पर तुम ही गलत सिद्ध हो जाते हो। लेकिन यदि तुम्हारा तर्क गलत सिद्ध हो जाता है,तो कुछ भी गलत सिद्ध नहीं होता है। तुम अपने तर्क को बदल सकते हो। तुम अपनी गहराई में परमात्मॉ का अनुभव नहीं कर सकते,क्योंकि विश्वास से अनुभव तक का रास्ता है ही नहीं।दोनों एक दूसरे से सम्बन्धित हैं ही नहीं। इसलिए विश्वास के बारे में भूल जाना उचित है,वरना सम्भावनॉ खतरनाक हो सकती है। बस बहाना बना सकते हो कि तुम अनुभव कर रहे हो।
3-परमात्मॉ का अनुभव मात्र एक बहाना है-
लोग मंदिर,चर्चऔर मस्जिद में जाते हैं और बहाना बनाते हैं कि वे परमात्मॉ का अनुभव कर रहे हैं। उनका यह अनुभव वास्तविक अनुभव नहीं है।देखा जा सकता है कि मन्दिर में उनके आंखों में आंसू बहता है।लेकिन मन्दिर के बाहर तुम उस आदमी को फिर वैसा ही नहीं देख पाओगे,जैसा तुमने उसे मन्दिर में देखा था वैसा बाजार के बीच में भी नहीं देखोगे। वह उसका एक मुखौटा था वह अनुभव करने का कठोर प्रयास कर रहा था,वह नकली घडियाली आंसू बहाने के साथ-साथ रोने और विलखने के लिए तैयार था। वे तो घडियाली आंसू थे।उसे तुम प्रार्थना करते हुये देख सकते हो,लेकिन उसके ह्दय में प्रेमाग्नि नहीं है,उसकी प्रार्थना मात्र मौखिक शव्द मात्र है।वे उन शव्दों को दोहराये चले जाता है,जिसे दोहराने के लिए उसे बताया गया है,तोता रटंत जैसा है। क्योंकि भावनाएं तभी उठती हैं,अनुभव तभी होता है, जब तुम अत्यधिक कठोर और निष्ठा से भरा हुआ जीवन जीते हो।
हमें परमात्मा के प्रति विश्वास के बारे में भूल जाना चाहिए,उसकी कोई जरूरत नहीं है।सिर्फ यही समझो कि तुम नहीं जानते हो। मैं नहीं जानता हूं,इसी निष्ठा से प्रारम्भ होता है परमात्मा का ज्ञान। हो सकता है परमात्मा हो,हो सकता है वह न हो,मुझे खोज करनी है। कहॉ खोजा जाय उसे, और कैसे खोजा जाय? .यदि परमात्मा है तो उसे वृक्षों पक्षियों और पशुओं सबका परमात्मा भी तो होना चाहिए,वह अकेला मनुष्यों का ही नहीं हो सकता है। अगर देखें तो वृक्ष कोई तर्क नहीं जानते,पशु पक्षी भी कोई तर्क वितर्क करना नहीं जानते।यदि परमात्मा है तो सभी का होना चाहिए। तर्क का क्षेत्र तो बहुत सीमित है,वह पूरे संसार का केवल छोटा सा भाग होता है,तर्क वितर्क के लिए मनुष्य के पास मन का केवल छोटा सा भाग है।
4-परमात्मा तक पहुंचने की नईं शुरुआत करें-
यदि परमात्मा है तो सभी का होना चाहिए,और उस तक पहुंचने की शुरुआत इस तरह करो कि जैसे वृक्ष करते हैं,सरिताओं की भॉति करना सीखें,जिसे सागर से मिलने के लिए दौड लगानी पडती है।पक्षियों की भॉति पहुंचो।इसके लिए अपनी गहराइयों के साथ नृत्य करना सीखें,परमात्मा को तो भूल ही जाओ,बस समग्रता से नृत्य करने में डूब जाओ-क्योंकि एक दिव्य नृत्य करते हुये उस भाव की दशा में मन एक क्षण के लिए विसर्जित हो जाता है,जिससे तुम्हैं समग्र और पूर्ण होने का अनुभव होता है।लेकिन अगर तुम अपनी प्रामाणिकता के साथ नृत्य कर रहे होते हैं,तो गति तीब्र होती है और फिर मन कार्य नहीं कर सकता है,मन रुक जाता है।
5- अज्ञात ऊर्जा से सम्बन्ध-
वे क्षण जब तुम परमात्मां के सम्बन्ध में तर्क की भाषा नहीं सोचते,तुम उस समय वृक्ष बन जाते हो,तेज हवा के साथ झूमने लग जाते हो,तेज बहती हवा के साथ झूमने लग जाते हो,एक वृक्ष या फूल,एक बहती नदी,एक सितारा या चट्टान बन जाते हो। उस समय तुम वह तर्क जो तुम पर अधिकार जमाये हुये था,को छोड देते हो। अकस्मात तुम्हैं किसी अज्ञात के सम्पर्क में होने का अहसास होता है,उस स्थिति में अगर कोई गीत गुनगुनाओ, कोई भी हो,धार्मिक कोई जरूरी नहीं है,यह अहसास ही धार्मिक बनता है।यह एक प्रकार का ध्यान है,जिसमें सक्रिय रूप में कार्य करना होता है। फिर यहॉ अनुभव होता है कि परमात्मां है। लेकिन यह परमात्मां हिन्दुओं,ईसाइयों या सिक्खों का नहीं बल्कि यह परमात्मां तो सिर्फ तुम्हारा अपना होगा।इसका तो गीता या बाइबिल या कुरान से कोई लेना देना नहीं है। इस परमात्मां का तर्कशास्त्र,दर्शनशास्त्र और संस्कारों से कोई लेना देना नहीं है, बस यह वह परमात्मां है जिसको तुमने महशूस किया,और उसमें जीकर उसका अनुभव किया है। बस परमात्मां को जानने का एक ही तो मार्ग है।
6-पुस्तकों से निर्णय लेने से पहले गतिशील बनो-
होता क्या है कि लोग पुस्तक पढते हैं,और फिर जीवन के बारे में निर्णय लेते हैं,जबकि यह उपयुक्त नहीं है हमें पहले जीवन में गतिशील बनना होगा और फिर फिर पुस्तकों के बारे में कोई निर्णय लेना चाहिए। लेकिन लोग आज शास्त्रों से सीख रहे हैं,जिससे वह महान शास्त्र बिना खुले रह जाता है। और शास्त्रों के द्वारा वे लोग केवल विचार पाते हैं। एक बार एक आदमी अपनी पत्नी से तलाक के सम्बन्ध में वकील से मिलने गया। वकील ने उस आदमी से पूछा कि तुम्हारे पास तलाक देने का आधार क्या है? तो उस आदमी ने कहा कि मेरी पत्नी को भोजन की मेज पर बैठने की आदत अच्छी नहीं है जिससे अपना स्वाभिमान नष्ट हो गया है। वकील ने कहा कि यह तो बुरी बात है, मगर आपका विवाह हुये कितने साल हुये हैं।उस आदमी का उत्तर था आठ वर्ष।वकील ने कहा आप अपने पत्नी के तौर तरीकों को आठ वर्षों तक सहते रहे, तो मेरी समझ में यह नहीं आ रहा है कि अब आप उसको तलाक क्यों देना चाहते हैं? उस आदमी कहना था कि मैं पहले स्वयं नहीं जानता था,मैं आज सुबह ही शिष्टाचार की एक पुस्तक खरीदकर लाया हूं,और मैंने उसमें शिष्ठाचार की बातें सीखी हैं,इसलिए मैं अपनी बीबी से तलाक चाहता हूं। यही स्थिति आज के जीवन में दिखती है कि पहले पुस्तक पढते हैं और फिर जीवन के बारे में निर्णय लेते हैं। अगर तुम पहले पुस्तकों के तर्कपूर्ण जाल में में उलझ जाते हो तो फिर तुम जीवन को जानने में कभी भी समर्थ नहीं हो सकोगे। इसलिए अधिक सहज और स्वाभाविक बनने का प्रयास करो! परमात्मां के बारे में सबकुछ भूल जाओ! उस परमात्मां के साथ रहो जो तुम्हैं पहले से ही घेरे हुये है।जरा कोयल के कूकते स्वर देखो,वह प्रार्थना कर रही है।पक्षियॉ चहचहाते हुई प्रार्थना कर रहे हैं,जरा उन वृक्षों की ओर देखो वे कितने प्रार्थनापूर्ण हैं।पूरा स्तित्व ही प्रार्थना में मग्न है,लेकिन तुम तो अपनी खोपडी में परमात्मां के बारे में विचार कर रहे हो कि वह है अथवा नहीं है!
7-समूह में सुन्दरता एक गतिशील है-
अगर देखें तो समूह में रहकर सुन्दरता गतिशील है। इसलिए हमें भी सुन्दरता का एक भाग बनना होगा,इस सुन्दरता में अपनी सहभागिता हमें देनी होगी। नदी का निर्मल बहाव है, हमें उसमें कूदना होगा,तुम नदी के किनारे बैठकर आंखें बन्द कर कुछ सोच रहे हो, कि तुम नदीं का एक कण हो, तुम्हारे बिना ये बहाव मन्द हो जायेगा।
8-परमात्मॉ से जीवन्त सम्पर्क करें-
हमारे अन्दर श्रद्धा का भाव तभी जन्मता है जब हमारा परमात्मॉ से जीवन्त सम्पर्क होता है।परमात्मॉ का यह संन्देश प्रामाणिक है,कि जब तुम सच्चे होते हो तो फिर तुम अस्तित्व के सत्य के साथ सम्पर्क बनाने में समर्थ हो जाते हो। अगर तुम प्रामाणिक होते हो तो समग्र के साथ सम्पर्क बनाने में समर्थ होते हो,तुम लयबद्ध हो जाते हो।लेकिन जब तुम नकली होते हो तो फिर समस्या उत्पन्न हो जाती है,तुम पूर्ण लयबद्ध नहीं हो पाते हो। इसके लिए तुम्हैं फिर से लयबद्ध होना होगा,प्रामाणिक बनने के लिए वापस लौटना होगा।
9-सच्चे और प्रमाणिक बनो परमात्मॉ के हो जाओगे-
महात्मॉ बुद्ध और महॉवीर परमात्मॉ के बारे में कुछ बात करते ही नहीं थे,वे कहते हैं कि सच्चे और प्रामाणिक बनो,और तुम परमात्मॉ के हो जाओगे। केवल सच्चे बनने से ही तुम सत्य के निकट आ जाते हो। साधारण सी बात है। लेकिन हम फिर भी समझ नहीं पाते हैं। विश्वास झूठा है,और उधार का ज्ञान भी झूठा है,उधार लिया हुआ तो गिरा देना चाहिए। तुम्हारी बटोरी हुई जानकारी तुम्हैं अहंकारी बना देती है,कि मैं जानता हूं। लेकिन तुम कुछ भी नहीं जानते हो,कुछ दिनों बाद तुम बहुत निर्धन होने का अनुभव कर सकते हो,एक भिखारी जैसा होने का अनुभव हो सकता है।लेकिन यदि तुम पहले ही यदि प्रामाणिक बनने को तैयार हो तो,अचानक एक दिन घटना घटित हो जाती है।जब तुम उधार ली गई जानकारी खो देते हो,तो तुम्हारे अन्दर से कुछ चीज जन्मती है जो न जाने कब से प्रतीक्षा कर रही थी। तुम्हारे अन्दर से ही कुछ उठता है,कोई सुवास जैसा,जो तुम्हारी पूरी चेतना को सुवास से भर देता है,और फिर अनुभव करते हो कि परमात्मॉ जो कुछ भी है यही है।
10 जीवन की ऊर्जा ही परमात्मा है-
परमात्मॉ और कुछ भी नहीं है,बल्कि यह जीवन ही परमात्मॉ है।परमात्मॉ कोई व्यक्ति नहीं है।परमात्मॉ तो एक ऊर्जा है,तुम ही तो परमात्मॉ हो। परमात्मॉ वह ऊर्जा है जिससे वृक्ष-वृक्ष है।सितारों में भी वही परमात्मॉ की ऊर्जा है। प्रत्येक वस्तु जिस सामग्री से बनी है,परमात्मा उसी सामग्री का एक कच्चा माल है।इस क्षण भी तुम परमात्मा के ही सागर में हो,वह तुम्हारे बहुत निकट है,लेकिन तुम उससे बहुत दूर अपनी बुद्धि में उलझे हो। बुद्धि को ह्दय से जोडने वाले सेतु से ही तुम चूके जा रहे हो।समझो और परखो,परमात्मा तुम्हारे सामने है।
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