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Showing posts from March, 2013

आशावाद और निराशावाद की जडें

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1-आशावाद व निराशावाद का सम्बन्ध-             हमारी जिन्दगी में आशा और निराशा दोनों दिखाई देते हैं। एक के वाद दूसरा सामने आता है,या कभी दोनों एक साथ दिखते हैं। इसका मतलव हुआ कि दोनों का परस्पर घनिष्ठ सम्बन्ध है,यह भी कह सकते हैं कि दोनों एक ही है, भले ही वे अलग-अलग दिखाई देते हैं। जबकि दोनों एक दूसरे के एकदम विपरीत ध्रुव हैं। हमेशा एक निराशावादी आशावादी भी होता है। जबतक हमारे सामने दोनों हैं,हमें असन्तोष रहता है, और जब दोनों चले जाते हैं तब हम विश्राम करते हैं,क्योंकि दोनों ही हमारे लिए गलत हैं,असन्तोष देने वाले होते हैं।   2-आशावादी उजाला और निराशावादी अंधेरा है-   क-          अगर निराशावादी को देखें तो वह अंधेरे पक्ष की ही ओर देखे चले जाता है, और उजले पहलू से इंकार करता है,वह आधे सत्य को ही स्वीकार करता है। जबकि आशावादी लोग चीजों के अंधेरे पक्ष से इंकार करते हैं,केवल उजले पक्ष को ही स्वीकार करते हैं,लेकिन यह भी आधा ही सत्य होता है। अर्थात आशावादी और निराशावादी दोनों प...

प्रेम आत्मॉ का पोषक है

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1-प्रेम की नीव-           अगर नाव का वजन अधिक है तो वह डूब जायेगी,तैरेगी नहीं, इसलिए प्रयास करें। प्रेम की नाव में बैठकर वही व्यक्ति पार हो सकता है जिसमें कोमलता हो,गीत और नृत्य का उत्सव आनन्द के रूप में हो। इसलिए मिट्टी की तरह कोमल बन जाओ, इसके लिए अपने ह्दय से सभी कठोर पत्थरों को छॉनकर बाहर फेंक दो। लेकिन होता क्या है कि हम उल्टा करते हैं,हम संदेह और अविश्वास एकत्र करके अपनी ही जमीन को पथरीला बनाकर नष्ट कर देते हैं। जो प्रेमी एकाग्रता से प्रेम करता है,वही सत्य को उपलव्ध हो सकता है।क्योंकि अमृत पाने के लिए ह्दय रूपी शीरे में प्रेम के कृत्यों को मिलाकर और उसे आग पर रखकर मथना होता है। 2-प्रेम का अहसास -           सामान्य़तः लोग प्रेम तो करते है,लेकि्न उसमें प्रेम की तीव्र भावना और अहसास नहीं होता है,वे प्रेम का शोषण करते हैं,वे प्रेमियों की भॉति व्यवहार तो करते हैं,लेकिन उसका यह प्रेम केवल अपने को संतुष्ट और प्रशन्न करने के लिए ही होता है।प्रेम की तीव्र भावना और अहसास नहीं होता है।...

खुशी के पल नाच-गान के साथ

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1-नाच-गान ही जिन्दगी में खुशी के पल है- अ-          कुछ लोग जिन्दगी के पलों को आनन्दमय बनाने के लिए नाच-गाने को महत्व देते हैं,वे कहते हैं कि अगर तुम नाच सकते हो तो तुम्हारे जीवन में कई अवरोध नष्ट हो जायेंगे। क्योंकि नृत्य में जो गति होती है वह सच्ची होती है,केवल उसमें इधर-उधर घूमना ही तो है। अगर आपने किसी को नृत्य में खोते हुये देखा होगा,तो उस समय उसके मन की दशा को समझ के देखें तो नाचते हुये वह घुल रहा है,तरल बन रहा है,वह ठोस से तरल बन रहा है,यही तरलता अवरोधों को पिघलाती है। इसलिए उन लोगों के लिए नृत्य करना भी एक योग है। इसी लिए वे दूसरों के साथ घण्टों नाच करते हैं। कुछ लोग तो रात्रि के स्वच्छ चॉदनी में नाचते हैं,वे चॉद को कृष्ण के प्रतीक के रूप में मानते हैं,वे कृष्ण को पूर्ण चन्द्र ही कहते हैं। फिर जहॉ पूर्ण चन्द्रमॉ है वहॉ वे नाचेंगे ही। यह नृत्य उनका किसी को दिखाने के लिए नहीं होता है बल्कि अपने आनन्द के लिए होता है। अगर कोई देखता है तो अलग बात है। ब-          एक बार किसी ने तु...