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Showing posts from April, 2013

प्रार्थना ऐसी हो जिसकी अनुभूति की जा सके

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  1-प्रार्थना करने की कोई विधि नहीं है-             जी हॉ कुछ लोग प्रार्थना की विधियों का उल्लेख करते हैं, मगर प्रार्थना की कोई भी विधि नहीं हो सकती है। क्योंकि यह न कोई संस्कार है और न कोई औपचारिकता बस प्रार्थना ह्दय से निकलने वाला सहज स्वाभाविक उमडता हुआ एक भाव है। लेकिन इसमें पूछने वाली बात नहीं है कि कैसे?क्योंकि? यहॉ कैसे, जैसा कुछ भी नहीं है,कैसे जैसा कुछ भी हो सकता है। उस क्षण जो भी घटता है,वही ठीक है। अगर आंसू निकलते हैं तो अच्छा है,कोई गीत गाने लगता है तो भी ठीक है,अगर अन्दर से कुछ भी नहीं निकलता है तो शॉत खडे रहते हो,यह भी ठीक है।क्योंकि प्रार्थना कोई अभिव्यक्ति नहीं है,या किसी आवरण में भी वन्द नहीं है। प्रार्थना तो कभी मौन है,तो कभी गीत गाना प्रार्थना बन जाती है। यह तो सबकुछ तुम और तुम्हारे ह्दय पर निर्भर करता है।इसलिए अगर मैं तुमसे गीत गाने के लिए कहता हूं तो तुम गीत इसलिए गाते हो कि ऐसा करने के लिए मैंने तुमसे कहा, इसलिए यह प्रार्थना झूठी है।इसलिए प्रार्थना में अपने ह्दय की सुनो,और उस क्षण को महसूस करो औ...

विश्वास और संदेह का सम्बन्ध

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1-विश्वास करना एक निर्णय नहीं है   अ-         अगर हम किसी पर विश्वास करते हैं तो यह हमारा निर्णय नहीं है,इसलिए कि हम उसके लिए निर्णय नहीं ले सकते हैं। जब हम उसके प्रति संदेह करना बन्द कर देते हैं,जब हम संदेह को संदेह की दृष्टि से देखने लगते हैं, तो हम संदेह की व्यर्थता के प्रति पूर्णतः आश्वस्थ हो जाते हैं,फिर विश्वास का जन्म हो होता है। विश्वास के लिए तो कुछ करने की जरूरत नहीं है,वरना विश्वास का महत्व कम हो जायेगा,क्योंकि विश्वास और हमारा निर्णय हमेशा संदेह के विरुद्ध ही होगा। जबकि विश्वास संदेह के विपरीत नहीं होता है। जब संदेह नहीं होता है तो उस समय विश्वास होता है। इसी प्रकार विश्वास किसी के प्रतिकूल नहीं होता है। ठीक उसी प्रकार जैसे कि अंधकार प्रकाश के विपरीत नहीं होता है। भले ही यह विपरीत प्रतीत होता है,इसलिए कि हम अंधकार को लाकर प्रकाश को नष्ट नहीं कर सकते हैं। हम अंधकार को अंदर नहीं ला सकते हैं,हम अंधकार को प्रकाश के ऊपर उडेल नहीं सकते हैं। अंधकार इसलिए हैं,क्योंकि प्रकाश नहीं है।जब प्रकाश होता है तो अंधकार नहीं होता है। औ...

परमात्मा तर्क का विषय नहीं है

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1-परमात्मॉ के तर्क से नकली विचार उत्पन्न होते हैं-     अगर परमात्मॉ के सम्बन्ध में हम तर्क करते हैं तो इससे नकली विचार उत्पन्न हो सकते हैं।हम यही सोच सकते हैं कि इस विराट संसार को एक साथ चलाने वाली एक शक्ति अवश्य है,लेकिन मैं यह नहीं जानता कि कौन इसे चला रहा है,कौन इसे सम्भाले हुये हैं,इस सम्बन्ध में हमें कुछ भी पता नहीं है,यह अज्ञान ही उपयुक्त होगा,जो कि ईमानदार प्रामाणिक और सच्चा है।इससे आगे सोचना नकली विचार उत्पन्न होगा।क्योंकि सचमुच हम कुछ भी नहीं जानते हैं।           अगर हम परमात्मां के सम्बन्ध में तर्क भी करते हैं तो हम सोचते हैं कि यह संसार सभी को एक साथ लेकर ऐसे ही कैसे चले जा रहा है? इसके लिए परमात्मॉ अवश्य होगा।और कुछ दार्शनिक ऐसे भी हैं जो कहते हैं यह संसार ऐसे ही यॉत्रिक रूप में चले जा रहा है,पृथ्वी,सूर्य,तारे चन्द्रमॉ सब एक साथ परिभ्रमण किए चले जा रहे हैं,इसमें परमात्मॉ नहीं हो सकता है।क्योंकि रोज सूर्य उगता और असत होता है यह पृथ्वी घूम रही है,लोग जन्म लेते हैं फल और बीज वृक्षों पर लगते हैं और बीज मौसम आने पर...